Wednesday, October 4, 2017

कवियों की मांग और कीमत



कौशलेंद्र प्रपन्न
अजित कुमार जी ने एक संस्मरण में लिखा है कि हरिवंश राय बच्चन जी ने कवि के तौर पर पहली बार कीमत की मांग की। बच्चन जी ने तब कहा था कि जो मुझे टैक्सी और सौ रुपए देगा मैं उसी कवि सम्मेलन में जाउंगा। इसकी आलोचना तब के कवियों ने जम कर की। लेकिन बच्चन जी ने बाजार को समझा और कवियों की कीमत, मांग, मूल्य तय किया।
आज कवियों की मांग और कीमत काफी है। एक कार्यक्रम के लिए कवियों की कीमत 500 से लेकर पांच हजार और पांच लाख तक की है। किसी कार्यक्रम के लिए कवियों की तलाश थी। सोचा क्यों न आज की तारीख में मंच के सिरमौर और ख्यातिप्राप्त कवि को संपर्क किया जाए। सो पीए से बात हुई जब उन्होंने कहा कि क्या बजट है आपका? हमने भी तपाक से पूछ लिया, कितने में बात बनेगी?
जवाब मिला पांच लाख एक कार्यक्रम का है। आपके बजट हैं तो आगे बात करें। हमने फोन मांफी के साथ काट दी। कोई दीवाना कहता है या फिर चार लाइन सब की कीमत आसमान छूने को है। आम आदमी तो कवियों को बुलाने की सोच भी नहीं सकता। इसलिए मंचीय कवि अब सरकारी और निजी संस्थानों और बाजार की ओर से ही बुलाए जाते हैं। छोटी मोटी गोष्ठियों में इनके दर्शन दुर्लभ हैं।
ऐसे दौर में कुछ कवि तो ऐसे भी हैं जिन्हें सिर्फ शाम की दावत पर भी बुला सकते हैं। कुछ को खाने-पीने पर। जैसे कवि वैसे दाम। और तो और ऐसे भी कवि समाज में हैं जो बिन पैसे एक बुलावे पर आ जाते हैं।
एक और कैटेगरी है जो बिन पैसे, बिन समय कविता सुनाने पर उतारू होते हैं। उन्हें बस मौका मिलने की जरूरत है बस शुरू हो जाते हैं। कोई सुन रहा है या मजाक उड़ा रहा है इसकी भी समझ नहीं होती। बस अपने धुन में कविता पाठ करते जाते हैं। ऐसे कवियों से पीछा छुड़ाना कई बार भारी पड़ता है।

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