Friday, October 27, 2017

सबके पास एक कहानी


कौशलेंद्र प्रपन्न
साहब वे बड़़े ही ग़जब के इंसान थे। हंसते तो ऐसे थे गोया पूरा आसमान उन्हीं का है। और तो और ऐसे भी रहे हांगे वे पल जब हम रोत पूरी रात आंखों में ही काट दिया करते थे। और अब यह आलम है कि घर आने के बाद दस बजते बजते कुर्सी पर ही लुढ़क जाते हैं। कहानियां होती ही दिलचस्प हैं। वह चाहे किसी की भी क्यों न हो। किसी भी देश,समाज, व्यक्ति की हो कहानी में रस, संवाद, पात्रों की बतकही पढ़ने-सुनने वाले को बंधे रखती है।
लेकिन एक कहानी हम सबके पास होती है। बल्कि एक से ज्यादा कहानियां जीवन में होती हैं जिसे हम किसी से भी साझा नहीं करते। उस कहानी रचैता हमीं होती हैं। हमारी आदतें, बातें, घटनाएं उस कहानी को बुनती हैं। लेकिन उसे कहानी को किसी से कहने से डरते हैं। शर्माते हैं। शर्माते क्यों हैं? क्यांकि लगता है कहीं हमारी हककीत न पकड़ी जाए।
यही वे डर है कि हम अपनी कहानी को कई बार खुद से भी साझा नहीं करते। दूसरे की बात तो दूर की रही। शायद वे कहानियां हमारे स्वयं की गिरावट की होती है। शर्मिंदगी वाली होती है। या फिर न चाहते हुए कोई घटना घट गई जिसका हिस्सा होना एक संयोग रहा हो।
कहते हैं दोस्त, भाई, पत्नी अच्छे साथी होते हैं। लेकिन फिर क्या वजह है कि हम उनसे भी अपनी कहानी सुनने से बचते हैं। कोई तो वजह होती होगी जो हमें कहानी कहने से रेकती है।। हमें अपने अंदर की दुनिया में झांकना होगा कि वे कहानियों क्योंकर साझा करने से बचते हैं
वैसे कहा जाता है कि कहानी, अपनी बात बांट लेनी चाहिए इससे मन हल्का होता हैं। फिर क्या कारण है कि हम अपना मन हल्का नहीं करना चाहते।

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