Friday, July 26, 2013

प्राथमिक शिक्षा की चुनौतियां
प्राथमिक शिक्षा जिन अहम चुनौतियों से गुजर रही है उन्हें मोटे तौर पर इन वर्गों में देख सकते हैं-
शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, शिक्षकों की रिक्त पदें, दोपहर का भोजन और शिक्षक की मनः स्थिति आदि।
जहां तक गैर शैक्षणिक कार्योंं में लगाए जाने की बात है तो नूपा की रिपोर्ट की मानें तो असम में 32 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 30 फीसदी, बिहार में 22 फीसदी, राजस्थान में 17 फीसदी आदि शिक्षकों को पूरे साल में गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया गया। डाईस की रिपोर्ट जो नूपा ही हर साल छापती है इस रिपोर्ट के अनुसार भी साल भर में किसी राज्य में 17 दिन, 22 दिन और 30 दिन से ज्यादा गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाए गए।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तो बेचारी कहीं पिछड़ ही गई है। कुछ गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से कराए सर्वे में पाया गया कि कक्षा 6 या 8 में पढ़ने वाले बच्चे कक्षा 1 या 2 री के स्तर के भी गणित व भाषा पढ़ने में असमर्थ हैं।
शिक्षकों के पदों सालों साल से खाली हुईं तो वो खाली ही पड़ी हैं। बिहार में तकरीबन 3 लाख, उत्तर प्रदेश में 2 लाख, झारखंड़ में 78 हजार, दिल्ली में 8 हजार पद रिक्त हैं। ऐसे में तदर्थ शिक्षकों जिसमें शिक्षा मित्र, पैरा टीचर, अनुबंध आदि पर तैनात शिक्षक पढ़ाने का काम कर रहे हैं। दिल्ली मंे ही कई प्राथमिक स्कूल ऐसे हैं जहां दो स्थाई और बाकी के सात आठ अध्यापक अनुबंध पर हैं।
दोपहर का भोजन। इसके बारे में कुछ कहना बेईमानी है। क्योंकि बिहार की घटना तो एक झलक मात्र है। ऐसी स्थिति अमूमन हर राज्य में ही है। कहीं मेढक मिलते हैं तो कहीं छिपकली। हालांकि भोजन के लोभ में काफी बच्चे स्कूल में दाखिल हुए। दाखिले की कहानी तो और भी हैं ममसलन वजीफा मिलने वाले दिन पूरी उपस्थिति होती है। बाकी दिन स्कूल ढनढन बजता है।
मनः स्थिति तो यह है कि पढ़ाने के प्रति अरूचि के शिकार शिक्षक बस एक एक दिन काट रहे हैं। ऐसी स्थिति दिल्ली सहित कई राज्यों की है। जहां पर शिक्षक पढ़ाने की बजाए शिकायतों की पोटली लिए बैठा है। बस आप सवाल करें और वे फूट पड़ते हैं। माना की स्थितियां खराब हैं लेकिन जितने दिन आप स्कूल में होते हैं क्या अपना 100 फीसदी बच्चों के देते हैं यह महत्वपूर्ण है।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...