Thursday, July 18, 2013

मिड डे भोजन ने ली फिर बच्चों की जान
एक निजी न्यूज चैनल के अनुसार बिहार में 11 बच्चों की मौत हो गई। माना जा रहा है कि 40 से ज्यादा बच्चे अस्पताल में हैं। यह पहली और आखिरी घटना नहीं है। मिड डे भोजन खाकर देश के विभिन्न राज्यों में बच्चे मौत के शिकार हो चुके हैं। सरकार है कि जागती नहीं। 
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और बच्चों के जुड़े मिड डे भोजन दोनों का एक सा हाल है। कहीं खीचड़ी खाकर तो कहीं रोटी और सब्जी खाकर मौत के घट तो बच्चे ही उतरते हैं। वो बच्चे जो निजी स्कूलों में नहीं जा पाते। वे बच्चे जिनके मां-बाप गैर सरकारी स्कूलांे के नखरे नहीं उठा सकते गोवा उनके बच्चे बच्चे नहीं हैं। 
सरकारी स्तर पर कितनी ही स्तर पर कमियां दिखाई देने के बावजूद यदि दुरुस्त नहीं किया जाएगा तो ऐसे बच्चों की संख्या कम होने की बजाए बढ़ेंगे ही। मिड डे भोजन परोसने वाली निजी संगठनों और भोजन मुहैया कराने वाली संस्थाएं इस जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकतीं। उन्हीं इन मौतों का जिम्मा लेना ही होगा।
गौरतलब बात है कि देश भर में मिड डे भोजन के नाम पर जिस तरह के खाद्यपदार्थ परोसे जाते हैं वो किसी भी कोण से पौष्टिकता के निकष पर खरे नहीं उतरते। इन पंक्तियों के लेखक ने उत्तर प्रदेश, अंध्र प्रदेश, बिहार आदि राज्यों के दौरे के दरमियान पाया कि रोटी अधपकी, सब्जी के नाम पर चने या न्यूटीनेगेट के पनीली सब्जियां परोसी जताती हैं। यू ंतो स्कूल के प्रांगण में कई जगह हप्ते भर के भोजन की सारणी दिखाई देगी कि फलां दिन पूरी-खीर, खीचड़ी, रोटी दाल, आदि मिलेंगी। लेकिन हकीकत बच्चे बताते हैं कि उन्हें क्या मिलता है। जिस जगह पर कुत्ते गस्त मार रहे हों वहीं पास में रोटी भी पक रही हो तो ऐसे में स्वच्छता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
बेहतर हो कि या तो मिड डे भोजन पकना बंद हो या उसकी गुणवत्ता एवं पकने की प्रक्रिया पर खास नजर रखा जाए।

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