Friday, August 2, 2013

फोड़कर ठीकरा तुम्हारे सिर


भगवन हम फोड़कर ठीकरा तुम्हारे सिर-
कोसते रहते हैं हर पल,
तुमने अच्छा नहीं किया,
मैं क्या बिगाड़ा था किसी का,
भगवन हम हैं ऐसे ही,
कोसना और रोना अपने भाग्य पर।
जब जब हुई अनहोनी-
हमने आरोपित किया तुम्हें,
मंदिर या मस्ज़द में लड़ आते हैं हम,
गंगा में डुबकी लगा धोने को समस्त पाप,
लगाते हैं दौड़ कांवड़ लेकर,
मगर तुम तुम ठहरे।
किसी भी किस्म का रिश्वत नहीं तुम्हें कबूल-
तुम वही देते हो जो किया हमने कर्म,
ख़ामख़ा तुम करते हैं बदनाम,
हे ! प्रभू सुन रहे हो तुमत्र
मैं कोई रिश्वत नहीं दूंगा,
कोसूंगा भी नहीं,
नहीं करूंगा दर्शन तेरात्र
किसी कैलाश या अमरनाथ की यात्रा से तौबा,
करूंगा अपना कर्म तन-मन लगाकर,
तुम क्रुद्ध मत होना।
ग़र मेरे हाथ में न हो आचमन-
या कि नमाज़ भी न करूं अदा तो,
नाराज़ न होना,
अगर न किया हवन तो भी,
मेरी समिधा पहुंचा देना,
उन्हें जिन्हें दरकार है।

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