Tuesday, July 9, 2013

एकांत में नहाते हुए
वो जब नहा रही थी उसी वक्त जीजा झांक रहा  था। कुछ उसके गिले बदन को देख देख कर अपने भाग्य को कोसता जीजा सोच रहा था कि मुझे क्यों नहीं मिली ऐसी संुदर बदना। कि तभी दीवार से कुछ खिसका और उसके आभास हुआ कि कोई है जो झांक रहा है।
झांक रहा है उसे एकांत में नहाते हुए। कोई कौन हो सकता है? घर में केवल दीदी और जीजा ही तो हैं। दीदी देख नहीं सकती। फिर वह दूसरा कौन है। सहज ही था दूसरा कोई और नहीं उसका जीजा ही था। उसने इस वाक्या को दबा दिया कि कहीं दीदी के घर में बवाल न हो जाए। कहीं इसका खामियाजा दीदी को न भुगतना पड़े।
बात आई गई हो गई। लेकिन बात तो बात थी नहीं। वह एक घटना बिन सोचे नहीं घटित नहीं हुई थी। सो एक बार फिर घटित हुई। लेकिन इस बार घर भी उसी का था और बार्थरूम भी। बस झांकने वाला व्यक्ति एक ही था। इस बार उसने विरोध का जोखि़म उठाना ही बेहतर समझा।
वैसे उसका पति कब का दूसरी लड़की के प्रेम में जा चुका था। ले देकर एक अपंग लड़का साथ था। शायद यही वो सहजता और सकून था उसके जीजा की नजर में। सो बाज नहीं आता। जबकि उसके भी जवान बेटी थी और बेटा भी। इस बार उसने सब के सामने यह बात रखने की हिम्मत जुटाई।


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