Tuesday, July 9, 2013

बोध गया और लाहौरः दर्द एक सा
इधर बोध गया में धमाका उधर लाहौर में भी। इधर मरने वालों की संख्या कम उधर 20 से भी ज्यादा। ख़ून दोनों ही जगह। दोनों ही जमीन पर आतंकी हमला। न वो सुरक्षित और न हम। 
सच है। लाहौर में बाजार था उनके निशाने पर और यहां मंदिर। एक शांति स्थल तो दूसरा भोजन स्थल। शाम में लोग घरों से निकल कर विभिन्न तरह के व्यंजन खाने आए थे। वहीं वहां मन की शांति की तलाश मंे। एक ओर क्षुधा तृप्ति थी तो दूसरी ओर मानसिक। 
उनके लिए दोनांे ही जगह एक समान। सिर्फ और सिर्फ लोग। जिनके बीच दहशत खौफ पैदा करना और खून बहाना मकसद था। जो उन्होंने किया। कत्ल, खून, आतंक न बौद्ध को स्वीकार है और न इस्लाम को। लेकिन ऐसे लोग तमाम धर्माें, संप्रदायों और वादों ने परे अपने ही दर्शन पर चलते हैं। जो चीख, हत्या, ख़ून आदि की ही भाषा बोलता, समझता है। 
या ख़ूदा उन्हें सही इल्म दे।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...