Friday, July 12, 2013



फेसबुक का काव्य संसार

कौन कहता है साहित्य मर रहा है। साहित्य लेखक व पाठक नहीं रहे। ग़लत आरोप है। यह अलग बात है कि जिस तरह के साहित्य की अपेक्षा एक मंजे हुए लेखक समूह से की जाती है वह नदारत है। नदारत इसलिए क्योंकि आज जिस तरह की साहित्य देखने पढ़ने को मिलता है वह आत्ममुग्धता से ग्रस्त है। स्वप्रकटकरण के व्यामोह से लबरेज़ है। काव्य सृजन जितना कठिन कर्म है उतना ही आसान भी। मन के भावों को प्रकट करने में अब महज लय का ध्यान रखना काफी माना जाता है। जिसे नामवर सिंह जैसे आलोचक मानते हैं कि छनद मुक्ति का आशय लय मुक्ति नहीं है। कोई भी कविता छनद मुक्त तो हो सकती है लय मुक्त नहीं। तो इसकी बानगी फेसबंक पर बहुतायत मात्रा में मिलती है। देश के कोने कोने से हिन्दी भाषा, अहिन्दी भाषी सब कविता लिखने में लगे हैं।
कविता व काव्य साहित्य का एक अंग है। संपूर्ण साहित्य कहना अनुचित होगा। पद्य और गद्य। कविता पद्य के पाले मंे बैठती है। कविता के प्राचीन और आधुनिक दोनों ही रूपों से हम बचपन से वाकिफ हैं। बचपन में पाठ्यपुस्तकों में शामिल भवानी प्रसाद मिश्र, सुभद्रा कुमारी चैहान, महादेवी वर्मा, निराला, नागार्जुन आदि से लेकर बच्चन जी की कविताओं का आस्वाद लिया है। तब से काव्य के प्रति एक अनुराग हम सब को रहा है। यह अलग बात है कि पाठ्य पुस्तकों में शामिल कविताओं को पढ़ने की मजबूरीवश पढ़ना पड़ता था। उसकी व्याख्या करनी पड़ती थी। लेकिन, तब बोझ लगने वाली कविताएं बड़े होने पर अपने व्यापक अर्थ गाम्भीर्यता से खुलने लगीं। तुलसी या सूर या फिर कबीर को पढ़ते वक्त लगता था क्या कठिन कविता है। कैसी भाषा है। अब नाहि रहिहों इसि देस गोंसाईं। जैसी भाषा को पढ़ते वक्त कोफ्त होती थी। लेकिन अब उन्हीं भाषिक छटाओं को देख देख, पढ़ पढ़ कर गौरव महसूस होता है कि उन्हीं भाषाओं में ब्रज, मागधी, अवधी, भोजपुरी की व्यापक छटाएं खुल कर खिलती थीं।
सूर तुलसी, कबीर या घनानंद, जायसी को पढ़ना ठीक वैसी ही अनुभूति से भर जाना है जैसे कोई कालीदास, भवभूति, दंड़ी को पढ़ने में मिलता है। जहां संस्कृत के इन विद्धान कवियांे, नाटककारों ने अपनी प्रतिभा का निदर्शन कराया वहीं हिन्दी में भी रीति काल भक्ति काल से होते हुए आधुनिक काल की कविताएं पढ़ते सुनते हुए महसूस की जा सकती हैं। जहां न केवल सांैदर्य वर्णन मिलते हैं बल्कि अन्य रसों का का स्वाद भी चखने को मिलता है। जहां घनानंद, जायसी प्रेम पूर्ण कविताएं लिखते हैं वहीं प्रकारांतर से राजनीति, प्रकृति, धर्म, समाज एवं अर्थ की भी स्थिति भी हमारे सामने खुलती है।
फेसबुक पर कविताओं की रचनाएं खूब देखी जा सकती हैं। रोज दिन सृजित कविताओं को फेसबुक पर पाठकों ‘‘ फ्रैंड लिस्ट में शामिल’’ के बीच परोस कर एक खुशी से भर उठना कि देखिए, पढि़ए और सराहिए कैसे कविता है। दरअसल वे कविताएं प्रेम रस में पगी होती हैं। तुकबंदी प्रधान ये कविताएं क्षणिक आवेश में लिखी चार पांच लाइन की कविताएं बहुत दूरगामी नहीं होतीं। दूरगामी से मतलब है लंबी आयु वाली। कितना अच्छा हो कि जिस तरह फेसबुक पर कविताओं की नदी बहा करती है उस अनुपात में कम ही सही कुछ अच्छी आलोचनाएं, समीक्षाएं लिखी जाए तो अच्छा हो।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...