Friday, January 29, 2010

लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ से एक जिम्मेदार एवं सृजनात्मक भूमिका

लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ से एक जिम्मेदार एवं सृजनात्मक भूमिका निभाने की उम्मीद एवं मांग नाजायज नहीं ठहराई जा सकती। इस चौथे स्तम्भ यानी पत्रकारिता की शक्ति को कमतर नहीं माना जाना चाहिए। क्योंकि पत्रकारिता की एक आवाज़ जर्जर, भ्रष्ट एवं स्वार्थपूर्ण राजनीति एवं छद्म जनचेतना को बेनकाब करने के लिए पर्याप्त है। यह बताने की आवश्यकता नहीं कि एक सिंगल कॉलम की ख़बर (स्टोरी) अपनी मारक क्षमता से सरकार, संस्थान व व्यक्ति विशेष को धूल चटाने की माद्दा रखती है। मुद्रित माध्यम अर्थात अखबार, पत्रिका में प्रकाशित एक-एक शब्द, वाक्य एवं फोटो कितने व्यापक स्तर पर मार करते हैं, इसकी बानगी वक़्त-वक़्त पर देखने को मिली है।

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