घरघुसना से कुछ याद आया, बचपन में वैसे लड़कों या आदमी को घरघुसना कहते थे जो घर से निकलता ही नहीं। उसे यक बयक लोग देख कर कहते थे क्या माँ की या बीवी की पल्लू से बाहिर कैसे निकल गए। हर समय बीवी का देखते रहने वाले आलोचना के शिकार होते ही थे। लेकिन उनकी भी आदत पुरानी थी सो नहीं निकला तो नहीं ही निकला करते थे।
आज भी कई लोग मिलेंगे जिन्हें घर से निकलना हो तो कई बार तलने की कोशिश करते हैं।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Thursday, January 14, 2010
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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