Thursday, January 7, 2010

साहित्य में अतीत


साहित्य में अतीत बड़े ही ब्यापक रूप से वर्णित होता रहा है। किसी की कृति में लमही की जमीन, लोग, बोली वाणी साकार रूप पाते हैं, तो किसी की रचना में मैला आँचल रचा बसा होता है। वहीँ बाबा नागार्जुन के यहाँ छिपकली दीवारों पर गश्त लगा रही होती है तो कानी कुतिया बुझे चूल्हे के पास बैठी खुजला रही होती है इस उमीद में की कभी तो सब लोग होंगे बोहुत दिनों के बाद।

लेखक, कथाकार, उपन्यासकार अपनी लेखनी से अपने आस पास की हाल, उठा पटक को बखूबी पकड़ कर पाठक को परोसते हैं। कालिदास की रचना हो या विद्या निवास मिश्र या फिर निर्मल वर्मा ही क्यों न हों इन सभी की रचना अपने समय और तत्कालीन समय की करवट भी सुनी देखि जा सकती है। कोई लेखक अपने समय की धरकन को भला कैसे नज़रंदाज कर सकता है। जो येसा करता है उसके पाठक वर्ग बड़े ही सिमटे और अपने कुप्प में सिमित रहा करते हैं। किसी भी रचना की व्यापकता की पह्च्यां उसके पाठक की रूचि , पसंद - नापसंदगी पर काफी निर्भर करती है। जो ज्यादा पढ़ा जाएगा उसकी बाज़ार में मांग तो होगी ही साथ ही उससे पाठक वर्ग को उमीद भी होती है। लोग इंतजार करते हैं की अगला क्या आने वाला है। लेखक कुछ नया कहने लिखने के लिया किसे दौर से गुजर कर लिख पता है इसका अनुमान शायद पाठक को न हो लेकिन जो इस दुनिया के लोग हैं वो तो बेहतर समझते हैं।

जो समय के कपाल पर चरण धरने का मादा रखता है वही लेखक कुछ लिख सकता है। वर्ना रोज दिन लेखक उगते हैं और शाम से पहले ही ढल जाते हैं। लेकिन इक हकीकत यह भी है जिसे इंकार नहीं किया जा सकता कि लेखक आज की तर्रिख में केवल लिख पढ़ कर जीवन नहीं चला सकता। घर के लिया चाहिय नून तेल और रोटी। और यह लिख कर संभव नहीं। कभी हमारे साहित्य जगता में यैसे लोग थे। लेकिन आज समय कुछ और है। आज तो यैसे लोगों से कोई अपनी बेटी भी ब्याहना नहीं चाहता।

पैसे का मोल जानना होगा। स्वन्था सुख्या के बजाए बाज़ार और पाठक को ध्यान में रख कर लिखना होगा। वर्ना कई लेखक अपने उम्र के ढलान पर बुनयादी दवा चिकित्सा के घर के कोने में चारपाई पर खस्ते रहते हैं। अपने मेडल, अवार्ड को बेच कर जीवन की आखरी घडी को काटना मज़बूरी होती है। हर कोई प्रेमचंद, रेनू या संसद तक के सफ़र कर आने वाले की पंक्ति में नहीं आता। इक इक पुस्तक छपने में कितनी मसक्कत करनी होती है यह किसी उस लेखक से जान सकता है जिसे प्रकाशक कैसे कैसे नचाते हैं।

बॉस , बस आज इतना ही वर्ना कहीं आप या हम निराश हो कर उमीद छोड़ कर बैठ जाएँ , जो लिखयेगा वही तो आज न कल छापेगा।

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