Saturday, February 9, 2019

लिखने की शुरुआत ही जनसत्ता से





कौशलेंद्र प्रपन्न 
यूं तो लिखने का चस्का हरिद्वार में ही लगा गया था। सन् 1991 रहा होगा। मुझे लिखने की ओर जिन्होंने प्रेरित और आकर्षित किया वो एल एन राव थे। कमाल के मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक। साथ ही पत्रकारिता में भी उनकी गति थी। उन्होंने ही मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया। 
आज पुरानी फाइलों देख रहा था। दिल्ली में पहली बार जनसत्ता में छपा था। सन् 1998। लेख था ‘‘सावधान! लाल बत्ती खराब है।’’ तब जनसत्ता में रजनी नागपाल, उष्मा पाहवा, प्रियदर्शन, मंगलेश डबराल जी हुआ करते थे। इस लेख के बाद जनसत्ता से एक अटूट रिश्ता सा बन गया। जनसत्ता में बतौर बीस वर्ष से लिख रहा हूं। जनसत्ता के साथ ही साथ हिन्दुस्तान, इंडिया टूडे, कादंबनी आदि में छपने लगा। इस लेखन यात्रा में कई सारे मोड़ मुहाने आए। ख़ुद को मांजने, खंघालने और लगातार लिखने के दबाव भी बने। उन दबाओं के दरमियां गुणवत्ता से समझौता नहीं किया। एक वक़्त ऐसा भी आया जब देश के प्रतिष्ठित पांच छह अख़बारों में एक में दिन छपने भी लगा। चस्का से ज्यादा छपने और लिखने की लत सी लग गई।  
शुरू में किसी भी विषय पर लिखता जो भी संपादक कहते, मांग करते उसपर लिखता। फिर भी उस वक़्त भी बच्चे, शिक्षा, भाषा केंद्र में ही रहे। कभी कभी भटकाव भी आए। आज जब पूरे दो दशक को अपने लेखन के लिहाज से देखता और समझने की कोशिश करता हूं तो यही पाता हूं, इस लिखने ने एक पहचान दी। समझ दी और लोगों से जुड़ने का अवसर दिया। आग चल कर हंस, पाखी, हिन्दी चेतना, आधुनिक साहित्य, इंडिया टूडे, योजना आदि में छपने लगा। जैसे जैसे लेखों का पहाड़ बढ़ रहा था वैसे वैसे विषयों के चुनाव और लिखने की रणनीति में निखार आते आए। याद आता है जनसत्ता में प्रियदर्शन जी और सूर्यनाथ जी ने काफी मार्गदर्शन किया विषयों के चुनाव से लेकर उसके साथ बरताव कैसा हो आदि। 
लिखने साथ ही पढ़ना ही छूटा। किताबों पढ़ता, लेख पढ़ता और इससे शुरू हुई समीक्षा लिखने की तमन्ना। इसे साकार किया इंडिया टूटे, कुबेर टाइम्स, पाखी, हंस आदि ने। समीक्षाएं तभी लिखता जब कोई अच्छी किताब पढ़ता और महसूस होता कि इस किताब के बारे में औरों को भी जानकारी होनी चाहिए। 
लिखने दुनिया में यही कोई दो दशक गुज़ार चुका। दो किताबों को जन्म दे पाया भाषा, बच्चे और शिक्षा, कहने का कौशल और तीसरे किताब भाषायी शिक्षा से सरोकार प्रक्रिया में है। यदि लिखने की चाह हो तो पढ़ना और अभ्यास बेहद ज़रूरी है। 

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