Wednesday, February 13, 2019

सवाल मत करियो रज्जो



कौशलेंद्र प्रपन्न
रज्जो तुम्हें एक बात क्यों समझ में नहीं आती? क्यों तुम्हारे कानों पर जूं नहीं रेंगते? क्यां सवाल किया करती हो? क्यों हर सवाल का जवाब मिले इसकी उम्मीद करती रहती हो? इत्ता वक़्त गुज़र गया इतनी सी बात तुम्हारे भेजे में नहीं समाती कि सवाल करने से उन्हें दिक्कत होती है। उन्हें नहीं पसंद है कि तुम या कोई भी उनके कामों, सोचों और योजनाओं पर सवाल करे। लेकिन तुम्हें तो इतनी सी बात समझ नहीं आती। तुम्हें ताकीद करते करते मेरे न जाने कितने दिन और कितनी रातें गुज़र गईं। लेकिन तुम हो कि अपनी इस आदत से बाज़ नहीं आती। बस बहुत हो गया। अब आखि़री बार समझता हूं कि सवाल करना छोड़ों वरना छोड़ जाओगी इन दर ओ दीवारों को। फिर मत कहना कि समझाया न था। वैसे दफ्तर में कोई दोस्त नहीं होता। न ही हो सकते हैं। हर किसी को अपनी चिंता होती है। उसे कितना छलांग मिला। किसे कितनी बढ़ोत्तरी हुई। इसमें हर कोई अपनी रीढ़ को भी बांस दिया करता है। और एक तुम हो कि सवाल किया करती हो। सवाल सुनने वाले बचे ही कितने हैं। जो बचे हैं उन्हें सवाल नहीं बल्कि कुछ और सुनने की अपेक्षा है। लेकिन ठहरी अपने सिद्धांतों की पक्की लेकिन देखना कहीं ऐसा न हो कि तुम और तुम्हारी फिलॉस्फी ही अंत में साथ रहें। बाकी के साथी जो साथ काम किया करते थे। वो आगे निकल जाएंगे और तुम वहीं की वहीं रह जाओगी।
तुम्हें यह क्यों समझ नहीं आती। निज़ाम को विरोध और प्रतिवाद सुनना पसंद नहीं है। यदि तुमने निज़ाम के हां हां नहीं मिलाया तो तुम्हारी छुट्टी कर दी जाएगी। कलुमर्गी, दुर्गा लंकेश के बारे सुना या पढ़ा है या नहीं। अगर नहीं पढ़ा तो पढ़ने का वक़्त निकालो। वैसे जानता हूं तुम्हें पढ़ने से कोई वास्ता नहीं। तुम और पढ़ों यह कैसा विरोधाभास है?
तुमने से पढ़ना ही छोड़ दिया। बल्कि छूट गया जब से जॉब में आई हो। लेकिन फिर भी एक राय मान लो कि पढ़ो। शायद तुम्हारी सेती आंखें में कुछ खुल पाएं। खोलों अपनी आंखें और देखों कौन साथ है और कौन दूर खड़ा बस खेला देखना चाहता हैं। चलते चलते इतनी सी बात कहूंगा। सुन लो! सुन लो न सवाल मत करना। 

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