Tuesday, February 12, 2019

लोग जाते गए और कारवां सिमटता गया


कौशलेंद्र प्रपन्न
‘‘यूं तो अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल मगर लोग जुड़ते गए और काफला बनता गया’’ बहुत ही प्रसिद्ध पंक्ति है इसे के सहारे अपनी बात बल्कि एक कहानी सुनाने की कोशिश करूंगा।
कभी कभी हम या कि आप अकेला हुआ करते हैं लेकिन जैसे जैसे हम समाज में उठते बैठते हैं वैसे वैसे हम वतन, हम जबान, हमम न, मिलने लगते हैं और दोस्ती गहराती जाती है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि एक संस्था, कंपनी में भी यह सटीक बैठती है। कंपनी या संस्था में भी धीरे धीरे दक्ष और कुशल लोग आते जाते हैं और एक कुटुम्ब सा बनता जाता है। यहां हर चीज हर काम सभी के बीच हो जाया करती है। सब अपनी जिम्मदारी लेकर हर काम को किया करते हैं। ‘‘साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जाएगे मिल के हाथ...’’ और काम यूं ही हो जाया करते हैं।
एक वक़्त ऐसा भी आता है संस्था या कंपनी में कि कुछ ख़ास या आम वजहों से इस कुटुम्ब में बिखराव आने लगते हैं। एक एक कर या तो छोड़कर जाने लगते हैं या फिर उन्हें जाने के लिए कई सारे तर्कां, वजहों के जाले बुने जाते हैं जिसमें उलझकर सदस्य परेशान होने लगता है। एक दिन सोचता है बेहतर है यहां से चला ही जाए। ... और जैसे झोला उठा कर आया था वैसे ही झोला उठा कर चला भी जाता है।
उसके जाने का असर यह पड़ता है कि दूसरे संगी साथी भी दबाव महसूस करने लगते हैं। एक भय और निराशा के माहौल में सांसें लेने लगते हैं। कई बार यह भयपूर्ण माहौल वास्वत में होता है तो कई बार ऐसा एहसास होता है। कई बार एहसास कराया जाता है कि यदि उसके साथ ऐसा कर सकते हैं व किया जा सकता है तो हम क्या चीज हैं।
चीज ही तो हो जाते हैंं। जिसे कभी भी, कैसे भी संस्था से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। वह जाने वाला सोचता है जिसे उसने अपने जीवन के ख़ास और विशेष कौशल, दक्षता और क्षण दिए आज उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं रही। और वह दूसरी दुकान के लिए चल पड़ता है।
कभी सोचें तो शायद इस कहानी की गिरहें ज़रूर खुलेंगी। उस एक के जाने से वैसे तो संस्था पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता। लेकिन कई बार अवश्य ही उस एक के जाने से लगता है हमने एक बेहतर मानव संसाधन को खोया है। हालांकि इस तरह की बातों के लिए अब या तब भी कोई ख़ास मायने नहीं रह जाते।


No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...