Tuesday, February 19, 2019

छुट्टी अधिकार नहीं और तनाव


कौशलेंद्र प्रपन्न
आज दिल्ली पुलिस के दो अधिकारियों से बातचीत का मौका मिला। एक थे अस्टिंट इंस्पेक्टर ऑफ पुलिस और सब इंस्पेक्टर। दोनों से ही ठहर कर बातचीत हुई। इन्होंने बातों ही बातों में स्वीकार किया कि हमें छुट्टी नहीं मिलती। हमारे तनाव मैनेजमेंट ऑफिसर हमें तनाव मुक्ति का सुझाव और उपाय बताते हैं। लेकिन वही हमें इतना तनाव देते हैं कि पूछिए मत। पिछले दिनों मेरे घर में रिश्ते के लिए कुछ लोग आने वाले थे। मैंने छुट्टी एप्लाई किया। लेकिन हमारे साहब ने कहा छुट्टी आपका अधिकार नहीं है। पहले काम कीजिए। सर काम का यह आलम है कि कोई भी त्योहार हो, घर में कोई काम हो, बच्चे को अस्पताल ले जाना हो लेकिन हमारे साहब कहते हैंं पहले मैं तहकीकात करूंगा कि वास्तव में ऐसा है या नहीं तभी छुट्टी दूंगा। हमारे बारे में कई तरह की ख़बरें आती हैं। हम क्रूर हैं। इससे कोई गुरेज भी नहीं लेकिन हमारे काम के घंटों को कोई नहीं देखता।
आज पुलिस के अधिकारी से बात के बाद कई सारी बातें और हक़ीकतों से रू ब रू होने का मौका मिला। उन्हें किन हालात में काम करना पड़ता है। कैसे वो लोग अपने घरों, परिवारों के काम नहीं आते। जब घर वालों को उनकी ज़रूरत होती है। इन तनावों के माहौल में वो कैसे काम और घर के बीच सामंजस्य स्थापित करते हैं इसे नागर समाज को समझने की आवश्यकता है।
छुट्टी को लेकर हम हमेशा ही उत्साह और अधिकार के प्रति सचेत होते हैं। लेकिन अपने कर्तव्य के प्रति कोई ख़ास वास्ता नहीं रखते। हमेशा ही अपनी छुट्टी के अधिकार को लेकर लड़ते हैं। जबकि सरकार और कंपनियां छुट्टियों की सैलरी भी देती है। ऐसे में अधिकार की बात करना कई बार बेईमानी सी लगती है। लेकिन सच्चाई है कि जहां दुनिया भर में चार दिन के कार्य दिवस पर चर्चा हो रही है। वहीं हमारी निजी कंपनी और सरकार इन छुट्टियों को खत्म करना चाहती हैं। पांच दिन के कार्य दिवस को छह दिन करने पर आमादा हैं। पता नहीं दुनिया की ख़बरों से हमें कोई वास्ता है या नहीं? क्या हम समझना नहीं चाहते कि जो काम पांच दिनों में हो सकता है उन्हें छह दिनां के लिए बांधना कितना वाजिब होगा।
सिर्फ कार्यदिवस को बढ़ाकर हम अपनी कुर्सी की धौंस तो जता सकते हैंं लेकिन कार्य की गुणवत्ता को लेकर कोई भी दावा नहीं कर सकते। जिस शिद्दत के कर्मचारी पांच दिनों में काम करता है। वह छठे दिन तनाव और मजबूरन करेगा। यानी कहीं न कहीं दिखावे के लिए काम में लगा हुआ दिखाएगा। उसकी प्रेरणा और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता कहीं दूर चली जाएगी।
इन्हीं तनावों की वजह से सेना में कई बार गोलीबारी भी हुई है। अपने ही अधिकारी की हत्या की ख़बरें भी आती रही हैं। ऐसे तनाव के पल सिर्फ सेना में नहीं बल्कि आम जिं़दगी में भी देखी-सुनी जा सकती है। ऐसे में बॉस के प्रति किस प्रकार की घृणा और विद्वेष के भाव जगते हैं उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते।

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