Thursday, July 26, 2018

समकालीन कथाकार एवं संपादक श्री महेश दर्पण से गुफ्तगू




दर्पण जी उन गिने चुने हुए लेखक,कथाकारों में शामिल हैं जिन्होंने तकरीबन चार दशक पत्रकारिता में गुजारे।
दिनमान, नवभारत टाइम्स, धर्मयुग आदि पत्र-पत्रिकाओं में अपनी सेवा दे चुके दर्पण जी ने पिछले दिनों कथा-कहानी और पत्रकारिता पर बातचीत का अवसर मिला।
दर्पण जी की प्रमुख और गहरी चिंता इस बात की थी कि पत्रकारिता से सरोकार एक सिरे से ग़ायब होता गया। कभी प्रभाष जोशी, अज्ञेय, राजेंद्र माथुर, रघुवीर सहाय, सुरेंद्र प्रताप जैसे लोगों से पत्र-पत्रिकाओं की पहचान हुआ करती थीं। ये लोग अपने आप में एक संस्थान हुआ करते थे। प्रभाष जी या फिर अज्ञेय जी अपने पत्रकारों कर ख़बरों को लेकर सांसद, मंत्री और सरकार से भी लड़ पड़ते थे। वह एक युग था। अब एक जमाना है कि दबाव में ख़बरों दम तोड़ देती हैं।
वही हाल कथा-कहानी की है। कहानियां भी इन दिनों कुछ ख़ास दबावों, प्रलोभनों और अन्य प्रभावों की गिरफ्त में लिखी और छापी जाती हैं। 

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