Thursday, July 26, 2018

ठहराव जिं़दगी के


कौशलेंद्र प्रपन्न
ठहराव महज़ ज़िंदगी को ही खत्म नहीं कर देती बल्कि जीने की ललक और छटपटाहट को भी मार देती है। हम सब एक समय, पद, प्रतिष्ठा हासिल करने के बाद ठहरने लगते हैं। एक आत्मतोष घेरने लगता है कि हमने अपनी जिं़दगी में बहुत कुछ पा लिया। जो प्रसिद्ध, मान, पद आदि मिलने थे मिल गए। अब आगे क्या? और क्या हासिल करना शेष रहा? जब इस प्रकार के प्रश्नों के आगे हम चुप हो जाएं तो समझना चाहिए कि हमारी जिं़दगी में ठहराव का डेरा लग चुका है। दूसरे शब्दों में कहें तो लाइफ कोच, मैनेजमेंट के जानकार इसे किसी भी प्रोजेक्ट के लिए बेहतर और लाभकरी स्थिति नहीं मानते। क्योंकि मैनेजर या लीडर या फिर आम इंसा नही जब अपने आप से संतुष्ट हो जाता है, उसे कहीं से भी चुनौतियां नहीं मिलतीं तब कुछ समय के बाद ठहरने लगता है। जानकार व्यक्ति इसलिए ताकीद करते हैं कि रूकना नहीं। ठहरना नहीं। आगे बढ़ना है। जीवन में अपने ही कामों को चुनौती देनी है। या फिर अपने सामने चुनौतियों खड़ी करने से हम हमेशा चौकन्न और सक्रिय हुआ करते हैं।
हम सब की ज़िंदगी में एक वह मकाम आता है या फिर हम मान लेते हैं कि हमने सबकुछ हासिल कर ली। अब कुछ बचा नहीं जिसे पाना हो। वह चाहे पद, पुरस्कार, मान सम्मान आदि ही क्यों न हो। दो किस्म के व्यक्ति होते हैं। पहला, हमेशा ही अतीत प्रेमी और अतीत में जीने वाला। उसके लिए वर्तमान की चुनौतियां कोई ख़ास मायने नहीं रखतीं। वो साहब जिनसे भी जब भी मिलते हैं उनकी जबाव अपनी पुरानी कहानियां, शौर्य, दान, उपकार आदि सुनाने में ख़र्च करती है। उन्हें इसी कहानी वाचन में आनंद बल्कि स्वप्रशंसा में गोते लगाने ज़्यादा भाता है। यदि इन्हें कोई टोक दे, या फिर यह एहसास कराए कि अब वो बात नहीं रही। आप का वो वक़्त था, अब ऐसा नहीं होता। किया होगा आपने ऐसे वैसे काम लेकिन आज ख़ुद को खड़े करने, दौड़ाने में पूरी जिं़दगी खप जाती है। इस प्रकार के लोग अपने जीवन में करते छटाक भर है लेकिन इस छटाक भर काम पर पूरी जिंदगी गुजार देने का माद्दा रखते हैं। वहीं दूसरा, वे व्यक्ति होते हैं जिन्हें अपनी जिं़दगी में ठहर जाना या पुरानी कामों में ही आत्मसुख तलाशाना बहुत देर तक नहीं भाता। इस किस्म के लोग रोज़ नई नई चुनौतियों से लड़ने और रणनीति में बनाने में अपना समय, श्रम, और सोच लगाया करते हैं। शायद इस प्रकार के लोग ही जमीन से आसमान तक की याख करते हैं। यही वो लोग हैं जो न केवल अपनी जिं़दगी बल्कि अपने परिवार के साथ ही समाज को भी एक नई राह और ऊंचाई प्रदान करते हैं। यही वो लोग हैं जो लीडर या समाज चेत्ता कहलाने के हकदार होते हैं। इन्हीं लोगों के कंधे पर समाज, प्रोजेक्ट, लाइफ की प्रगति और गति निर्भर करती है।
घर और समाज में दोनो ही तरह के लोग मिलेंगे। पहले वालों की संख्या कुछ ज़्यादा होती है जिनके प्रभाव में दूसरे वालों के पनपने की संभावना को कमतर करती हैं। पहले वालों के प्रभाव क्षेत्र और औरा बहुत बड़ा और व्यापक होता है। इस प्रभाव क्षेत्र को एरिया ऑफ इन्फ्यूलेंस कहा करते हैं। जो किसी भी व्यक्ति व प्रोजेक्ट की सफलता को प्रभावित करती हैं। एरिया आफ इन्फ्यूलेंस और एरिया और कंसर्न दोनों ही वो ताकतें हैं जो पहले और दूसरे किस्म के लोगों की कोशिशों और सफलता को ख़ासा प्रभावित करती हैं। दूसरें शब्दों में कहें तो कंसर्न यानी जिन तत्वों, परिस्थितियों आदि से हमारा सीधा सीधा साबका पड़ता है। जिसे हम या तो बदलने की ताकत रखते हैं। वहीं एरिया आफ इन्फ्यूलेंस हमारे हर प्रयासों को प्रभावित करता है। हमारे काम और प्लानिंग पर असर डालता है। कई बार एरिया आफ इन्फ्यूलेंस पर हमारी पकड़ नहीं होती। हम इस हैसियत में नहीं होते कि इसे बदल सकें। तब ऐसे में इसे नियंत्रित करना व बदलने हमें मुकम्मल रणनीति बनानी पड़ती है। कई बार आम व्यक्ति एरिया आफ इन्फ्यूलेंस और एरिया और कंसर्न पाट में फंस जाता है।

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