Tuesday, July 10, 2018

भाषायी हत्यारे...इतने निष्ठुर कैसे हो सकते हैं हम?




कौशलेंद्र प्रपन्न
यदि किसी व्यक्ति की हत्या होती है या की जाती है तो उसके लिए भारतीय संविधान मे सज़ा का प्रावधान है। विभिन्न धाराओं उपधाराओं के तहत आजीवन कारावास या सज़ा ए मौत तय है। लेकिन ताज्जुब की बात है कि जब मानवीय विकास से गहरे जुड़ी किसी भाषा की हत्या होती है या की जाती है जो उसके लिए कोई सज़ा का प्रावधान नहीं है। राहुल देव, वरीष्ठ पत्रकार और भारतीय भाषाओं के संरक्षण की वकालत बड़ी ही शिद्दत से कर रहे हैं। उनका मानना है कि भारत को बचाना है तो भारतीय भाषाओं को बचाना होगा।
पिछले दिनों टेक महिन्द्रा फाउंडेशन के शिक्षा ईकाई अंतःसेवाकालीन अध्यापक शिक्षा संस्थान में शिक्षांतर व्याख्यान माला की नौंवी कड़ी में बतौर वक्ता अपनी बात रखी कि हम सब रोज भाषाओं के साथ अन्याय करते हैं। बल्कि हम सब भाषा के हत्यारे हैं। वह इस रूप में कि न तो हम हिन्दी ही ठीक से बरत पाते हैं और न अंग्रेजी ही। दो भाषाओं के बीच में हमारी पूरी जिं़दगी गुज़र जाती है। हमें न तो अच्छे से हिन्दी आ पाती है और न अंग्रेजी ही। उदाहरण से इस वक्तव्य को स्पष्ट किया कि क्रू कभी हमने किसी अंग्रेजी के सेमिनार में या व्याख्यान में हिन्दी को सुना है? कितनी प्रतिशत हिन्दी उन सेमिनारों में बोली जाती हैं? आदि। वहीं हिन्दी के सेमिनार में अंग्रेजी के शब्दों और वाक्यों का इस्तमाल प्रचूरता से होता है।
राहुल जी का मानना था कि यदि हम हिन्दी बोल रहे हैं तो पूरी हिन्दी ही बोलें। उसमें अंग्रेजी की छौंक न लगाएं। दरअसल इसके पीछे हमारी मानसिकता का परिचय भी मिलता है। आज की तारीख़ में हज़ारों भाषाएं मर चुकी हैं बल्कि हर साल मर रहीं हैं लेकिन उन्हें बचाने के लिए हमारी संवेदना नहीं जगती। हम इतने निष्ठुर कैसे हो सकते हैं?
भाषायी विमर्श में राहुल जी ने बड़ी संजीदगी से इसे स्थापित किया कि भाषा के बगैर हमारा अस्तित्व नहीं है। भाषा मरती है तो एक पूरा का पूरा जीवन दर्शन मर जाता है। एक अस्मिता और भाषायी समाज खत्म हो जाती है।


2 comments:

Neha Goswami said...

बिल्कुल सही कहा, भाषा को हम स्वयं ही खत्म कर रहे है। अकादमिक क्षेत्र में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं का प्रयोग दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। एक ऐसा माहौल बन गया है कि अपनी भाषा पर गर्व करने के बजाय, उल्टा हम अपनी भाषा का प्रयोग करने में हीनभावना महसूस करने लगते है।

BOLO TO SAHI... said...

Shukriya neha ji. aapne shiddadh se apni rai dee.

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