Wednesday, October 30, 2013

गरियाते क्यों नहीं भाई साहब


गरियाना क्यों छोड़ दिया,
जब मैंने कहा कहानी कविता उपन्यास का दौर खत्म हो गया,
मैंने ही छेड़े जब विवाद रंगों के,
रंगों की दुनिया और राजनीति की बात जब कही,
तब तो आपने खूब कोसा,
अब कोसना क्यों छोड़ दिया भाई साहब।
आपके गरियाने में आनंद था
जीवंतता थी,
अपनापा था और था रोज आपसे मुखातिब होना का सबब,
जब से गरियाना छोड़ दिया सूना सूना लगता है रोजनामचा।
गरियाइए कि मैं ही था जिसने आपको काहिल कहा-
मैं ही था जिसने सभा में,
मंच पर आप पर आरोप लगाए,
मगर आप थे कि गरियाना छोड़ दिया था,
गरियाइए भाई साहब।
क्या अब गरियाने का रिश्ता भी खत्म हो गया-
नहीं भाई साहब,
दोस्त न सही गरियाने का संबंध तो रहना ही चाहिए,
कम से कम एक दूसरे को याद तो किया करते थे,
गरियाइए कि मैंने ही भूगोल से उन्हें धकीया दिया,
भाषा की पगड़ंडी से मैंने ही उन्हें घिसुका दिया,
गरियाने का फर्ज तो बनता है भाई साहब।

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