Thursday, October 24, 2013

बलात्कारालय यानी बाबाश्रम


बचपन में संधि पढ़ाया गया था। जैसे विद्यालय विद्या$आलय, यानी जहां विद्या व ज्ञान का घर। वैसे ही आलय से आशय घर निकलता है। बलात्कारालय यानी बलात्कार का घर। जी चैंकने की कोई बात नहीं। क्योंकि पूरा देश आसाराम के बलात्कारालय से अब रू ब रू हो चुके हैं। वहां न केवल बलात्कार बल्कि अन्य किस्म के शोषण भी हुआ करते थे। आप को पता चल चुका है। हाल ही में ख़बर सोनीपत से आई है कि ओशो धारा आश्रम में भी यहां तथाकथित संत ने एक महिला के साथ बलात्कार किया। अब आप बताएं आश्रम, बाबालय नाम सुनते ही कैसी छवि आपके मन-मस्तिष्क में बनती है?
दरअसल बाबालय व बबंगों के लिए धर्म महज साधन है। साध्य नहीं। साध्य है राजनीति, संसद, धनार्जन और आम जन को बरगलाना। जो वो पूरी शिद्दत से करते हैं। एक बात तो स्पष्ट है कि किसी भी बाबा, कथावाचक को सुने लें वो एक अच्छे, कुशल वक्ता तो होते ही हैं। वक्तृत्व कला में पारंगत बबंगों के अपने स्वाध्याय होते हैं जो उन्हें आम जन की भावनाओं और आस्था को अपनी ओर बहाने में मददगार साबित  होती हैं। दर्शन, वेद, गीता, अन्य शास्त्रीय अध्ययन के साथ विज्ञान आदि की समझ विकसित करने के बाद व्याख्यान देने वाले बबंग सहज ही अपनी वाणी से औरों को लुभाने में सफल हो जाते हैं।
गौरतलब है कि प्रवचन देना और साधना करना दो अलग अलग चीजें हैं। जो साधना करते हैं वो वाचाल नहीं होते। जो वाचाल होते हैं वो साधक नहीं। बुल्लेशाह की पंक्ति उधार ले कर कहूं तो ‘जो बोले वो जानत नाहिं, जो जानत वो बोलत नाहिं।’

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