Tuesday, December 27, 2011

मौत का खौफ

मौत का खौफ बेहद हावी होता है जिस में इंसान पूरी ज़िन्दगी लुका छिपी का खेल खेलता रहता है. कभी दूर भागता है तो कभी सच के रूप में कुबूल करता है. लेकिन हकीकत है की इंसान यदि किसी चीज से डरता है तो वह है मौत. मौत को हमारे कुछ लोगों ने बड़ा ही भावः और दर्दीला बताया है. मौत मायने अंतिम सत्य, अकाट्य परिणति और न जाये क्या क्या बिम्बों में बंधने की कोशिश की गई है. जबकि गीता इन सब पर से पर्दा उठता है-
अजो नित्यं सहस्वतो अयं... न हन्यते हन्यात्ये शरीरे....
अर्जुन को समझाने के उपक्रम में गीता की रचना सच पुचा जाए तो इंसान के मया मोह के बांध को निर्बंध करने की कोशिश है. लेकिन फिर भी हम हैं की उस सत्य को स्वीकार नहीं कर पाते. हाँ, खुद को अजर अमर मान बैठते हैं.
मौत कोई छोटी चीज नहीं. लेकिन बात बात में कह डालते हैं मर गए यार. मौत है ...बला बला जबकि मौत इतनी सस्ती नहीं होती और ना ही भयावह. मौत को तो हमारे षोडश संस्कारों में अंतिम संस्कार मन गया है. जब कोई बुजुर्ग समय पर कुछ करता है तो इक उत्सवा का सा अंतिम यात्रा सजती है. गाजा बाजा भी साथ होता है. हाँ यदि असमय आकाश की और चल पड़ता है तो उसके जाने का गम ज़्यादा होता है. कई सारे काम, जिमीदारियां पीछे रह जाई हैं.
पाश की पंक्ति उधार ले कर कहूँ तो-
मौत खतरनाक नहीं होती,
आग भी नहीं,
खतरनाक होता है,
आखों में सपने का मर जाना....                           

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...