Sunday, December 11, 2011

चले जाने पर खालीपन हो

किसी भी समाज में शुन्य तब पैदा होता है जब किसी के चले जाने पर खालीपन हो जाए. किन्तु येसा ही तो नहीं होता. रामानुजन, जजे कृष्णमूर्ति, गाँधी जाते हैं तो दुसरे लोग उस जगह को भराने को आगे आ जाते हैं. यह स्थानापन्न कह सकते हैं. लेकिन दरअसल हकीकत में किसी के जाने की भरपाई नहीं होती. इक इकाई का जाना पूरी तरह से जाना ही मन जाएगा.
यह अकाट्य नियम है की जनम और मृतु दोनों ही अटल है. जनम तो हाथ में होता है की आप किसी जीव को धरती पर स्थापित कर सकते हैं लेकिन उसे अपनी जरूरत के अनुसार रोक नहीं सकते. जिसे ऑफ होना है वो होगा ही. कबीर की पंक्ति याद आती है -
जल में कुम्भ कुम्भ में जल है , बाहर भीतर पानी,
फुटा कुम्भ जल जल ही सामना ये तट बूझो जयनी.
किसी का हमारे बीच से चला जाना वास्तव में इक रिक्त स्थान छोड़ जाना ही है. बस उसके संघ बिठाये पल, घटनाएं महज हमारे अन्दर गाहे बगाहे बजती रहती हैं. किसी ख़ास अंदाज़, आवाज या उसके बोलने , हसने में जब भी साम्यता मिलते हैं . और हम इक बार उसकी याद में खो जाते हैं.
कभी सोच कर देखें की अचानक कोई शांत हो जाता है. हमारी इस दुनिया से यक पलक उसका कनेक्शन टूट जाता है. फिर लाख कोशिश के बावजूद वो हमारी पकड़ में नहीं आता.                       

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