Friday, December 9, 2011

रिश्ते वही जीते हैं जो सच होते

रिश्ते वही  जीते हैं  जो सच होते हैं. सच इन्सान और सन्दर्भ सापेक्ष होते हैं. जब हम कोई रिश्ता बुन रहे होते हैं तब ख्याल नहीं होता की किस शब्द के क्या और कितने गहरे मायने होगें जब आप किसी कारण से अलग रह पर चल पड़ेंगे. लेकिन हम कई सारे वायदे अलफ़ाज़ खर्च देते हैं बिन विचारे.
समय और सन्दर्भ बदल जाने पर यूँही शब्दों के मायने भी अपने अर्थ पीछे दरकिनार कर देते हैं.  जरा सोच कर चलना हर किसी "म्हाज्नाह एन न गतः सह पन्था"    यूँ ही नहीं कहा है.    

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...