Sunday, December 25, 2011

लोकार्पण इक किताब का

इक किताब के बहाने कई सरे विचार, भाव और तंतुएं खुद बा खुद खुलतीं चली जातीं हैं. कितने ही भाव और अर्थ भी धुंध लिए जाते हैं. कोई नारी विमर्श तो कोई नारी का देह विमर्श या फिर उत्तराधुनिक महिला का देह द्वन्द वर्णन में चावो, आनंद और काम के भाव धुन्धने वाले भी का म नहीं होते.
लिखने वाला बेशक जिस भी भाव से लिखा हो लेकिन पाठक व आलोचक उसकी लेखिनी में न जाने क्या से क्या भाव और मायने तलाश लेता है. आज की तारीख में एक महिला का लिखना एक सिरे से स्वभोगित जीवन की तस्वीर करार दिया जाता है. जब की खुद आलोचक , लेखक मानते हैं की कई बार पर काया प्रवेश की तरह ही पर भाव गमन भी लेखक करता है.
आज की तारीख में किसी के पास कहने को कुछ भी तो नहीं है. अगर कुछ है तो बस सेल फ़ोन पर गाने, मेस्सगेस ,  आदि डाउनलोड करना होता है. हर मोमेंट के फोटो खीच कर लोगों की तारीफ़ पाना होता है. सिर्फ बताना, अपनी सुनाना न की किसी की सुनने की चाह होती है.
अगर कुह कहना है तो कह डालो बजाये की पहले शिकायत की पुल बंधा जाए फिर हाल समाचार या कहने की बात राखी जाए.              

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