Sunday, June 27, 2010

राजनीति में न दोस्त न दुश्मन स्थायी

राजनीति में न दोस्त न दुश्मन स्थायी जी हाँ सही इशारा समझ रहे हैं हाल ही में जसवंत जी को पार्टी में मिठाई के साथ स्वागत किया गया। उनकी का वनवास पूरा हुवा। यह वनवास १४ साल का नहीं बलि बल्कि महज ९ माह का था। चेहरे पर क्या हसी थी घर वापस लौट कर। पर किसे घर में साहब उस घर में जिस की देहरी से बिना माकूल कारन बताये बाहर का रास्ता दिखाया गया था। चलिए हम इंसानों ने अपने हित के अनुसार मूल्य , नीति , नियम का निर्माण करते हैं जहाँ भी अपने मूल्य विकास में बाधा महसूस होती है जहत से उसे बदल देते हैं। जसवन जी ने भी बुरे ख्याल को दिल से निकल दिया है। पुरानी बटनों में दर्द से ज़यादा रखा ही क्या है सो वो भूल जाना चाहते हैं।
यह साबित करता है कि राजनीति में कोई भी किसी का चीर दुश्मन या दोस्त नहीं होते। वो तो लोजो की नज़र में इक विरोधी की छवि निर्माण करते हैं। लेकिन वही जब रात की पार्टी में मिलते है तो उसी अंदाज में जैसे सुबह या कि शाम कौच किसी ने कुछ कहा ही न हो।
सुबह का भुला शाम घर लौट आये तो उसे भुला कहाँ मानते हैं।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...