Sunday, June 6, 2010

हिंदी संग अंगरेजी

आज भाषा की आपसी रिश्ते तो अलग कर नहीं देखा जा सकता है। हर भाषा की अपनी प्रकृति होती है अपनी खास पहचान भाई जिसे नज़रन्दाज नहीं किया जा सकता। बच्चे हो या बड़े हर किसी को इस बात का इल्म हो चूका है कि अंगरेजी और हिंदी में से कोण सी उसके साथ दूर तब चलने वाली है। हिंदी में सरकारी घोषणा वादे और सपने दिखया जाता है मगर कम काज तो अंगरेजी में ही होता है। दोनों भाषा के प्रयोग करने वाले बेहतर तर्क देकर साबित करते नहीं थकते कि फलना हमारी मातृभाषा है और दूजा तो विदेशी ठहरी। अपनी घर की भाषा को जो जगह मिली है वह अंगरेजी को कैसे दे सकते हैं। भाषा के बीच लडाई है है बल्कि मनमुटाव तो बोलने लिखने वालों के बीच तमाम तरह के भेद हैं। जबकि कोई भे भाषा दुसरे की दुश्मन नहीं होती। हाँ यह अलग बात है कि जिस भाषा को बाज़ार , लोग ज्यादा मिलते हैं उसे अपने पर नाज़ होना भी लाज़मी है यही अंगरेजी के साथ है। दोनों की बीच इक लक्ष्मण रेखा खीचने वाले भावना को कुरेद कर दूसरी भाषा को निचा दिखने का खेल खेलते हैं।
स्कूल, कॉलेज या फिर दफ्तर में दोनों भाषा के चमत्कार आम है। हिंदी में और अज्ग्रेजी में बोल कर इस बात की परीक्षा ले सकते हैं। अंग्रेजी बोलने वाले की बात ज़ल्द सुनी जाती है। वहीँ हिंदी में बोल कर देख लें आपकी बात को उस वजन से नहीं लिया जाता। इक दुसरे को भला बुरा कहने से बेहतर है हम भाषा की शक्ति को कुबूल करें। दोनों भाषा को साथ ले कर भी चला जा सकता है। जरूरी तो नहीं कि हिंदी को बोलेन मगर अंगरेजी से नाक सिकुरे। साथ अगर दोनों भाषा आपके संग हो गई तो आपको मालूम नहीं आप कितने शक्तिशाली हो जायेंगे। दोनों भाषा पर चांस मार कर देखिये बहुत कठिन नहीं है। हिंदी तो हम छुटपन से ही बोलते आ रहे है। यानि आपको जो भी समय लग्न है वो अंगरेजी है। अगर रोज २० मिनुत भी अंगरेजी पर दिया जाये तो आप देखते ही देखते आप की सम्प्रेषण में चार चाँद लग जाएगी। अब आप दो भाषा को इक साथ रखते है। जहाँ जिस भाषा की जरुरत पड़े उसका इस्तमाल कर सकते हैं। लेकिन जब विकल्प ही नहीं होगा फिर आप मजबूर होंगे सिर्फ इक भाषा के इस्तमाल करने में।
विरोध अगर हो भी तो वह धनात्मक हो तो उसके अलग फायेदे है। विरोध भाषा के बरतने और जानकारी के स्टार पर होना बेहतर है लेकिन पढने को पुर्ग्रह से अलग रखना चाहिए तभी हमारे पास दोनों भाषाएँ इक नै दुनिया रच सकती है

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