खबर के नाम पर.....क्या कुछ आज अखबार में या न्यूज़ चैनल पर खबरें परोसी जा रही हैं कुछ देर के लिए लगता है परिभाषाएं कितनी ज़ल्द नये रूप में ढल जाती हैं। उदंड मार्तंड, सरस्वती , हरिजन आदि में जिस ख़ास उद्येश्य को ले कर खबर के प्रति नज़र होती थी जिस पर खबरों का चयन करते थे आज वह कसौटी पूरी तरह से बदल चुकी है। माध्यम के साथ खबर की प्रकृति भी बदल गई। यह गलत भी नहीं कह सकते चुकी खबर की भाषा , खबर का रूम क्या हो , साथ ही खबर को कितना तवज्जो दिया जाये यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप क्यों खबर देना चाहते हैं? खबर यानि पांच सवाल का जवाब देने काबिलियत रखता हो।
आज स्थिति यह है कि अख़बार में खबर कम विज्यपन ज्यादा और खबर उस में दुबक कर रहते है। खबर की औकात क्या है यह खबर की रफ़्तार नहीं बल्कि विज्ञापन के बाद खाली जगह पर निर्भर करता है। खबर के संपादन में यह देखा जाता है कि कहना से काट देने पर भी काम चल सकता है और खबर पर चाकू चला देते हैं। अखबार में खबर और विचार धुन्धने पड़ते हैं तब कहीं वह खबर मिलती है। विज्ञापन के बाद जो जगह बचता है वो जगह मनोरंजन परक खबर ले लेती हैं। फ़िल्मी गपशप। किसा किसके साथ किस विस चला रहे हैं। उसके बाद कुछ विज्ञानं समाज शाश्त्र आदि में क्या रिसर्च हो रहे हैं लेकिन इसमें ज्यादा खबरे हम विदेश में किसी संस्था, शोध के परिणाम को रोचक बना कर परोस देते हैं। मसलन कस कर चुम्बन करने से उम्र बढती है। सुबह सुबह सेक्स करने वाले ज्यादा तेज बूढी वाले होते हैं... फिर कुछ दिन बाद दुसे शोध के हवाले से खबर लगते हैं चुम्बन करने से मुह में दाने होते हैं। इस तरह की खबरे के पाठक खूब है। बड़ी ही चाव से पढ़ते है।
अख़बार के पन्नो से विचार , विमर्श गंभीर लेख तक़रीबन गायब हो चुकी हैं। हिंदी की बात करे तो विचार की दृष्टि से गरीब ही दिखती हैं। सम्पाद्किये पेज पर भी भूख मरी दिखयी देती है। लेख के स्थान पर ब्लॉग से उठा कर सीधे चाप देते हैं। न दुबारा लिखने का झंझट न ही प्रश्रीमिक देने का जहमत। बोध कथा प्रेरक प्रसंग आदि किसी किताब से प्रस्तुति में भी वही नज़र काम करता है। मन कि आज कैसी खबर कब किसको चाहिए यह रेअदेर की जरुरत पर निर्भर करता है। साथ ही पाठक पैसे वाला है तो उसके लिए खबर को प्राप्त करने के कई ज़रिये है। नेट , ब्लॉग, ट्विटर आदि माध्यम इतनी तेजी से समाज में इक नए वर्ज पैदा किया है। नेता, एक्टर , खिलाडी सब इक इक कर ट्विटर ब्लॉग के शरण में तेजी से जारहे है। अपनने मन के भड़ास निकलना जुरुरी है सो इस नए माध्यम को लोग तेजी प्रयोग कर रहे हैं।
ज़ल्द ही खबर की प्रकृति और खबर क्यों कितनी मात्र में चहिये यह पाठक पर निर्भर करता है।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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