Friday, June 11, 2010

नीति७ मूल्यपरक शिक्षा, मंत्री जी बतायेंगे सम्प्रदाए का नाम


नीति७ मूल्यपरक शिक्षा, मंत्री जी बतायेंगे सम्प्रदाए का नाम , जी अब केंद्रीय विद्यालय में मूल्य परक शिक्षा की तालीम दी जाएगी। निर्देशक जी ने आदेश ज़ारी किया कि हर विद्यालय के प्रधानाचार्य अपने आस पास के ब्रह्मकुमारी विशाविदयालय से संपर्क कर सप्ताह में इक दिन क्लास में नीति व् मूल्यपरक शिक्षा की पढाये सुनिश्चित करेगें। इस पर मानव संसाधन मंत्रालय ने अपना मंतव्य प्रगट किया कि ब्रह्मकुमारी संस्था से नहीं बल्कि रामकृष्ण मिशन से दिया जाये मूल्य पार्क शिक्षा। वैसे राष्ट्रीय शिक्षा व् यशपाल समिति और २००० के बाद खास कर मूल्य परक शिक्षा की सिफारिश की गई थी। मगर यह मामला ठंढे बसते में दाल दिया गया था। विवाद यह उठा कि धार्मिक शिक्षा दी जाये या आधात्मिक शिक्षा की सिफारिश की गई। बारह्हाल किसी ने इस विवाद वाले फाइल में हाथ जलाना नहीं चाहते थे सो मूल्य परक व् धर्म शिक्षा को दबा दिया गया। मगर कब तक कोई विवाद को डरा कर रख सकता है।

shishakha के ज़रिये समाज में बदलावों की लहर पैदा किया जा सकती है । नीति व् विचार व् ख़ास लक्ष्य को अमलीजामा भी शिक्षा के मर्फात पूरा करने का काम शिक्षा से लिया जाता रहा है। मंत्री जी मंत्रालय जिसके कब्जे मी होता है वो अपनी तरह की लहर पैदा करते ही रहे हैं। बीजेपी को जब मौक़ा हाथ लगा तो उसने भी अवसर का लाभ उठाया। कंग्रिस को जब कुर्सी मिली तो उसने भी कोई कसार नहीं उठा रहा। जिसे जब मौक़ा मिला उसने अपने पसंद के लोगों, विचार, जीवनी , कहानी व् कविता पाठ में शामिल करने में चुके नहीं। प्रेमचंद के उपन्यास को हटा कर , कहानी की जगह इक बीजेपी की नेता की लिखी ज्यो महंदी के रंग पाठ में ठूस दिया गया। अब बच्चे तो स्कूल में जो भी पद्य जायेगा उसे पढ़ कर उत्तर लिखने की लिए विवश होते हैं। उनसे या मास्टर जी मादाम से कोई राये भी लेना मुनासिब नहीं समझते।

विचार , वाद , पूर्वाग्रह को अगली पीढ़ी में खिसकाने शिक्षा का इस्तेमाल तो किया जाता रहा है। इसलिए हर सरकार शिक्षा पर कब्ज़ा कर मन माफिक तालीम विधायाला शिक्षा की पीठ पर तंग देते हैं। अगर नीति व् मूल्यपरक शिक्षा देने की सदिक्षा है तो टैगोर के शिक्षा दर्शन को तो शिक्षा शतर में ख़ास स्थ्याँ प्राप्त है उसे शामिल किया जा सकता है। लेकिन रामकृष्ण के तंत्र से शिक्षा देने पर मंत्रालय का तर्क यह है कि यह वर्ष १८५ वों वर्षगाठ मना रहा है। तो टैगोर का वर्ष गत भी इसी साल म्नायिजा रही है।

जो भी हो शिक्षा के बहाने विचार, पूर्वाग्रह व् अंध भक्ति व ख़ास धर्म की शिक्षा न दी जाये इस पर गंभीरता से सोचना होगा.

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