Thursday, June 24, 2010

समाज के नाक की खातिर क़त्ल

आज समाज की मान्यताएं किसे, कब , कैसे बदलता है इसे निशितित नहीं कहा जा सकता। लोग तरह तरह के तर्क दे कर अपनी बात को जायज ठहराठे हैं। कब बदलते हैं अपनी पहचान इसे भी आसानी से देख पाना मुश्किल है। इन दिनों प्रेम करने वाले जुगल को सीधे मौत के घाट उतारा जा रहा है। उसपर तर्क यह कि समाज के लिए जरूरी है। ये कुछ कुछ यैसे ही तर्क हैं जिसे कुतर्क कहा जा सकता है ।
हरियाणा से होते हुवे क़त्ल का सैलाब देश की राजधानी दिल्ली तक दस्तक दे चुकी है। जब देश की राजधानी में कोई सुरक्षित नहीं है तो दुसरे राज्य में क्या मंजर हो सकता है इसका अनुमान लग्न कठिन नहीं है। इक तरफ कोर्ट साफ़ शब्दों में पुलिस, सरकार को झाड लगा चुकी है। पुलिस को कोर्ट ने कह अगर बॉस का कुता गुम्म जाये तो पूरी फोरसे लगा दी जाती है। लेकिन राजधानी में कोई कैसे क़त्ल का खेल जरी रख सकता है।
मगर सरकार भी क्या करे उसे vot की चिंता है।

1 comment:

कडुवासच said...

...सार्थक पोस्ट!!!

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