Sunday, March 8, 2009

तो फागुन आ ही गया

फागुन तो आ गया आब भी लोगों पर खूब रंग दिखने लगे। इक रंग प्यार के चरोऔर बिखर गए हैं, मगर कोयल इस साल भी नही कुकी, न ही बसंत के आने पर फूल ही खिले, क्या खिला फिर ? हाँ अंतरिम बजट जरुर आए मगर चहेरे पर खुशी न दौर सकी।
पर ज़नाब पॉलिटिकल धरो में जम कर जोड़ तोड़ चल रही है
१५ वी लोक सभा में अपनी पुरी कोशिश झोक देने में कोई कसार नही उठा रखना चाहते सभी पार्टी अपनी दावेदारी मजबूत करना चाहती है।
कोण किस दल में जा मिलेगा कुछ भी तै नही है। दुनिया में मंदी की जम कर कोहराम सा मचा है लेकिन आने वाले चुनावो में प्रचार पर लाखों नही करोड़ से ज्यादा बर्बाद किए जायेंगे।



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