Tuesday, March 17, 2009

साथी जो दूर चला जाए

साथी जो दूर चला जाए
उसके लिए आप या की हम दुयाएँ ही किया करते हैं ,
वो चाह कर भी दूर भला कैसे जा सकता है ,
रहता तो करीब ही है पर ,
महसूस करने के लिए समय ,
कहाँ है हमारे पास ,
कभी नौकरी,
कभी लाइफ के पेचोखम ,
सुलझाते ,
पता ही नही चलता की ,
जो पास हुवा करता था ,
कितना दूर जा चुका है ।
इतना की आवाज भी दो तो ,
अनसुना सा लगता है ,
नाम किसे और का जान पड़ता है ...
क्या नाम दे कर पुकारें उसे ,
जो कभी सासों में समाया होता था ,
आज वही किताबों में धुंध करते हैं ,
दोस्ती का सबब...
कुछ शब्द खली से लगने लगते हैं ,
जब वो मायने नही दे पते ,
खासकर तब जब आप बेशब्री से धुंध रहे हों ,
इक खुबसूरत सा शब्द जो बयां कर सके ,
आप की अनकही भावना ,
जो अकले में शोर करने लगती हैं ।

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