Sunday, March 29, 2009

हिन्दी साहित्य इतिहास में हाशाये पर बाल साहित्य

हिन्दी साहित्य इतिहास में हाशाये पर बाल साहित्य
हिन्दी साहित्य का इतिहास उठ कर देखें तो इतिहास में बाल साहित्य की कहीं चर्चा नही मिलती। चाहे वो रामचंद्र शुक्ला का इतिहास हो या फिर हजारी प्रसाद का या फिर बाद के साहित्य इतिहास लेखन हर जगह बाल साहित्य उपक्षित है। वजह जो भी हो मगर बाल कथा जगत को इस लायक ही समझा गया की इस के बारे में भी चर्च करें। जब की साहित्य में दलित , महिला आदि कि चर्च है मगर बाल साहित्य को क्या वजह है हाशिये पर धकेल दिया गया।
जब हम प्रेमचंद , माखनलाल , सोहनलाल और मुक्तिबोध से लेकर महादेवी वर्मा तक के लेखन में बाल रुझान पाते हैं। इन सब साहित्येकारों ने बाल गोपाल के लिए भी लिखा यहाँ तक कि विष्णु प्रभाकर ने भी जम कर लिखा। बाल कहानियो का अपना अलग संसार है जिसमें बड़े लेखक प्रवेश नही करना चाहते।

1 comment:

अनुनाद सिंह said...

बहुत सही मुद्दा पकड़ा है आपने। किसी ने कहा है कि किसी भाषा के साहित्य की उत्कृष्टता उस भाषा में विद्यमान बाल-साहित्य की मात्रा और उसकी गुणवत्ता से आंकी जानी चाहिये।

क्यों नहीं आप हिन्दी के बाल साहित्य का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता हुआ एक विस्तृत लेख लिखें? इससे हिन्दी का भला होगा। बहुत से लोगों की जानकारी बढ़ेगी।

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