Saturday, March 14, 2009

कुछ रह जाती हैं

कुछ तो रह जाती हैं लाख आप या की हम खर्च कर देन सुबह से शाम तक मगर कुछ चीजें हमारे दरमियाँ रह ही जाती हैं जो कभी न तो बात पति हैं और न ही किसी से साझा ही किया जा सकता है।
साहित्य में इसे आप या की हमारा अपना अनुभूत सत्य होता है।
लेकिन कई बार रचनाकार पर गमन करता हुवा कुछ यासी रचना कर डालता है जो उसे कालजई बनादालता है।
इन्ही कुछ रचनाकार में निराला

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...