इक बार शब्द जुबान से निकल गए तो वापस कहाँ आ पाते हैं? आपको शब्द के हर्जाने तो चुकाने ही होते हैं चाहे वो नम आखों से करना पड़े या सॉरी बोल कर।
साहब जो कहा जाया है की बंद मुह से पता नही चलता सामने वाला विद्वान है या....
सूक्ति है न की कोयल और कौए के पहचान बसंत में बेहतर हुवा करता है। चोच खोला तो पता चलता है को को कर रहा है क्यु क्यु...
शब्द इन्सान को सोहरत दिलाता है तो दूसरी और जुटे भी खिलाता है। अब साहब तै आप को करना है की क्या चाहते हैं....
कालिदास ने ठीक ही लिखा है-
'इको शब्दा सु प्रोक्ता सोव्र्गे लोको काम धुक भवति'
इक शब्द नाद जागृत करता है तो इक ॐ या अल्ला उस से मिलाता है...
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Monday, March 9, 2009
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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