Saturday, February 28, 2009

मस्जिद के पिछवाडे आकर॥

ईटों की दीवार से लगकर,

पथराए कानो पे,

अपने होठ लगाकर,

इक बूढे अल्लाह का मातम करती हैं,

जो अपने आदम की सारी नस्लें उनकी कोख में रखकर,

गुलजार की लाइन बात रहा हूँ इन में ज़ज्बात सोती है।

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