Tuesday, November 25, 2008

बोहोत दिन से कुछ हुवा नही

बोहोत दिन बीते न हसी आई,
न दोस्तों की बात पर ताजुब,
क्या कहूँ की बस तेरी याद आई।
क्या कहूँ ,
कुछ दिनों से लोगों को ,
आर्थिक मंदी के आगे ज़िन्दगी खाक करते देख,
बाज़ार पर हसी आई।

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