क्या कोई दुःख से चिपक कर लंबे समय तक रह सकता है ? या कोई भी दुःख से लग कर जयादा समय तक चल नही सकता। एक समय का बाद दुःख भी ज़रा हल्का पड़ने लगता है। और देखते ही देखते दुःख का रंग ज़रा से सुखद बयार पा कर फुर्र होने को बैचन हो जाता है। कालिदास की एक लाइन है सुख दुःख चक्र की तरह होता है।
दोनों ऊपर और निचे होते रहते हैं।
फिर क्या कोई इस फलसफा को लाइफ में ढल पता है ? जिसने भी इस पर अमल किया उसका दुःख काल कम होता चला जाता है।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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