Tuesday, November 11, 2008

क्या कोई दुःख से चिपक कर....

क्या कोई दुःख से चिपक कर लंबे समय तक रह सकता है ? या कोई भी दुःख से लग कर जयादा समय तक चल नही सकता। एक समय का बाद दुःख भी ज़रा हल्का पड़ने लगता है। और देखते ही देखते दुःख का रंग ज़रा से सुखद बयार पा कर फुर्र होने को बैचन हो जाता है। कालिदास की एक लाइन है सुख दुःख चक्र की तरह होता है।
दोनों ऊपर और निचे होते रहते हैं।
फिर क्या कोई इस फलसफा को लाइफ में ढल पता है ? जिसने भी इस पर अमल किया उसका दुःख काल कम होता चला जाता है।


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