Tuesday, January 5, 2016

अच्छा वक्ता


किसी भी चीज यानी कंटेंट को कैसे रोचक तरीके से कहा जाए यह महत्वपूर्ण है। अन्यथा अच्छे से अच्छा कथानक ख़राब हो जाता है। कहने वाले पर काफी निर्भर करता है कि वह कैसे सुनने के लिए श्रोताओं को बांधकर रख पाए। कहना भी एक कौशल ही है। हमारे समाज में कई ऐसे लोग मिलेंगे जिनके पास कहने को बहुत कुछ है किन्तु सही तरीके से अपनी बात नहीं कह पाते।
भाषा की शैली और सहजता यदि वक्ता में नहीं है तो वह बेहतर कहने वाला नहीं बन सकता। कहने वाले की भाषा और शैली खासे मायने रखती है। यदि कक्षा में कोई शिक्षक बोल रहा है तो उसे अपनी भाषा और शैली दोनों पर ही ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है।
बीए व एम ए के दौरान विश्वविद्यालयों में ऐसे शिक्षक मिलेंगे जो अच्छे स्थापित लेखक,कवि व कथाकार हैं लेकिन कक्षा में कैसे पढ़ाएं एवं बोलें इसकी समझ व शैली उनके पास नहीं होती। जिसकी वजह से छात्र कक्षा से बाहर बैठना ज्यादा पसंद करते हैं।
वक्ता और लेखक होना दोनों ही दो अलग अलग कौशल हैं। जरूरी नहीं है कि जो अच्छा वक्ता है वह अच्छा लेखक भी हो। यही दूसरी भूमिका पर भी माना जा सकता है। बहुत कम लोग होते हैं जो वक्ता के साथ ही साथ लेखक भी होते हैं। श्रोताओं को बांधे रखना सचमुच एक अलग कौशल है। दूसरे शब्दों में श्रोताओं को बांधे रखने के लिए वक्ता को अलग से तैयारी करनी पड़ती है। श्रोता वर्ग कैसे है? उसकी रूचि और स्तर एवं मांग कैसी है आदि को ध्यान में रखकर वक्ता नहीं बोलता तो वह विफल हो जाता है।

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