Monday, January 18, 2016

हाॅल नबंर 12


कौशलेंद्र प्रपन्न
हाॅल नबंर 12। स्थान विश्वपुस्तक मेला। अपार भीड़। पाठक। दर्शक। प्रकाशक। हाॅल नंबर 12 के बाहर लंबी कतार। धक्का मुक्की। कौन पहले हाॅल में जाए। जो पहले गया समझा जाएगा विशेष है। हाॅल के बाहर तरह तरह के और विभिन्न वर्गो, भाषाओं,प्रांतों के लेखक,मंच संचालक,आलोचक,समीक्षक बैठे हैं। उन सब के आगे उनकी रेट लिस्ट लगी है। घंटे और दिन के अनुसार कितना चार्ज है इसकी जानकारी दी गई है। लेखक स्वयं नहीं बोलते उन्होंने भी काॅपोरेट कल्चर को अपनाया और उसी राह पर चल पडे। उन्होंने एक एजेंसी हायर कर रखी है। वही बोली लगाता है। वही बुकिंग करता है। आवाज लगाने के लिए उसके स्टाॅफ भी हैं। दूर दूर से आए लेखकों,प्रकाशकों और श्रोताओं की बोलियां लगा रहा है।
सौ रुपए से लेकर पचास हजार तक के लेखक मंच संचालक समीक्षक उपलब्ध हैं। ले जाईए। अपनी किताब का लोकार्पण कराएं। समीक्षाएं कराएं। अपने मंच की शोभा बढ़ाएं। मंच संचालक श्रोताओं का दिल जीतने में माहिर हैं। क्रूा कहा? श्रेाताओं की कमी है? फलां भी नहीं आए। उन्होंने वायदा किया था लेकिन नहीं आ पाए। तो भी ंिचंता मत करें। हमारे स्टाॅल पर श्रोता भी उपलब्ध हैं। किस तरह के श्रोता चाहिए आप बताएं। सािहत्यिक चाहिए। कलावादी चाहिए। उत्तर आधुनिक कविता की समझ रखने वाले अनुरागी चाहिए। श्रृंगार मंच प्रिय कविता पर दाद देने वाला चाहिए। साहब आप मुंह तो खोलें। आपकी जेब जिस तरह के श्रोता,लेखक,समीक्षक,मंच संचालक आदि को मैनेंज कर सकता है आप बोलिए तो सही। हमारे पास सारी सुविधाएं हैं। क्या कहा आप गैर हिन्दी भाषी प्रांत के हैं? कोई बात नहीं आपकी किताब दिल्ली से छप जाएगी। जैसी भी हो यहां प्रकाशक भी आपकी जेबानुसार मिलेंगे। आप बस मन बना लें तो संपर्क करें। ओह ! आप लिखना भी नहीं चाहते। क्या बला है। लेखक बनने की तमन्ना पाल सकते हैं लेकिन लिख नहीं सकते। आप रातों रात पाॅुपलर होने की ख्वाहिशें भी रखते हैं। चलिए आपको मना तो नहीं कर सकता। लेकिन साफ बता दूं ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे। लेखक भी इन दिनों बिजी हैं। उनके भी नखरे अपने अपने हैं। कहते हैं पहले बेरोजगार था तो रेट कम थे अब काम करने लगा हूं। एक नाम भी है बाजार में तो रेट भी उसी के अनुसार बढ़ेंगे ही।
किताबें छप गईं। मेला भी अपने पूरे उभार पर है। नाते रिश्तेदारों की मंडल भी आ चुकी है। यार दोस्तों को भी बुला लिया। मगर अब क्या हुआ? किताब भी छप गई। आपके हाथ में भी आन वाली है। अब क्या परेशानी है लेखक महोदय? कुछ नहीं किताब अभी मेरे हाथ मंे नहंी है। एक घंटे में मेरी किताब का लोकार्पण होना है लेकिन किताब कहां हैं? प्रकाशक गंभीर खड़ा है। समझना और समझने की कोशिश कर रहा है। किताब चल चुकी है। रास्ते मंे है। प्रेस से निकले हुए उसे दो घंटे हो चुके हैं। किसी भी वक्त हाजिर हो जाएगा। आप तो जानते हैं इन दिनों शहर में कितना भयंकर जाम लगा करता है। गोया कारें न हुईं बहनें हों जो गलबहियां करने लगती हैं। अब क्या कहा जाए। स्याले को बोला था रात में ही किताबें लेकर आ जाना। लेकिन आप तो जानते हैं लो इनके अपने नखरे होते हैं। रात में गला तर कराया तो जल्दी जल्दी बाइंडिंग हुई। वरना.....। वराना क्या किताबें बिना कवर और बाइंडिंग की अच्छी लगतीं क्या। भोंड़ी बिन कपड़े की खड़ी कोई....। अब चुप भी रहिए। किताबें नहंी आईं तो लोकार्पण किसका होगा स्टेज पर। मंच संचालक को भी पे कर चुका हूं। लेखक,आलोचक भी आ चुके हैं। श्रोता भी कब से कोंचे जा रहे हैं चाय नहीं आई। आप चाहते क्या हैं? क्यों ऐसा हो रहा है। लेखक साहब की सांसे टूट रही थीं। लगता है सारा मिट्टी होने वाला है। प्रेस वालों को भी बुला लिया है। अब उन्हें क्या घंटा तस्वीरें दूंगा। प्रकाशक चिंतित लेकिन संभला हुआ था। सर आप चिंता मत करें। मैं कुछ करता हुूं। आप अपनी तबीयत न खराब करें। सब रख राक्खा। सब चंगा होएगा।
दस मिनट शेष रह गए। अब कब आएगी मेरी किताब? लेखक बेचैन चारों ओर घिरनी की तरह नाच रहे हैं। प्रेस वाले सर आप कवर ही दिखा दो यदि किताब नहीं लिखी तो? सवाल खरोचने वाला था। लेकिन लेखक महोदय क्या जवाब देते। सो चुप हो गए। चिरौरी करते हुए कहा बस आने वाली है। रास्ते में जाम में फंसी है। कहीं ऐसा न हो सर की अंतिम दिन हांफती हुई आए आए। तब तक सारा मजमा उठ चुका हो। बार बार पश्मीने के शाॅल और सिल्क के कुर्ते को ठीक करते फिफरी की तरह नाक फुलाए घूम रहे थे। प्रकाशक बचता बचाता फोन पर बाहर निकल गया। जब पांच मिनट बचा तो गिरते पड़ते हाजिर हुआ। सर! चिंता ना करें। मैंने किताब की पांच कवर और जैकेट मंगा ली है। किताब न सही जैकेट को ही लांच कर दिया जाए। वैसे भी पूरी किताब कौन देखता है? आपने ही कौन सा पेज दर पेज पढ़ा व लिखा है? जब आप अपनी लेखनी नहीं पहचान सकते तो स्याले पाठक और लोकार्पणकर्मियों को क्या मालूम चलेगा।
...और लोकार्पणकर्मियों के हाथों में जैकेट रैप कर थमा दिया गया। मंत्रोच्चारण होने लगे। तालियों की गड़गड़ाहट से हाॅल गुंजायमान हो उठा। होता भी क्यांे न श्रोताओं ने चाय भी गटक ली थी। बजाते भी क्येां न। तारीफों के फ्लाई ओवर और अंड़र पास बनाए जा रहे थे।

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