Tuesday, January 12, 2016

पुस्तक लोकार्पणों का मेला विश्वपुस्तक मेला



कौशलेंद्र प्रपन्न
वर्ष 2016 का जनवरी का दूसरा हप्ता। विशेष गहमा गहमी। रूकिए जनबा! यह राजनीति व अंतरराष्टीय मसले के लिए नहीं बल्कि पुस्तक प्रेमियों के लिए पसंदीदा मेला है विश्व पुस्तक मेला। हर साल के मानिंद इस वर्ष भी हजारों प्रकाशक,लेखक,पाठक इस मेले में रोज आ रहे हैं। आगंतुकों की इच्छा है कि अपनी पसंदीदा लेखिका,लेखक,उपन्यासकार आदि से मिलकर कर बातें भी करें। दिलचस्प है कि यह अवसर मिल भी रहा है। विभिन्न प्रकाशक अपने स्टाॅल पर प्रसिद्ध लेखक,कवि,कथाकारों आदि को उपलब्ध भी करा रहे हैं। एक ओर सिने कलाकार कवि पीयूष मिश्रा, रवीश कुमार, अजित अंजुम, महेश दर्पण, मृदुला गर्ग, नासीरा शर्मा, नरेंद्र कोहली, प्रेम जनमेजय, प्रताप सहगल, विवेक मिश्र, मदन कश्यप, मौजूद हैं वहीं पाठकों की भी भीड़ कम नहीं है। हर कोई इसी जुगत में है कि कैसे इन लोगों से एक पल बात कर लें। फोटो साथ ले लें। किताबें कितनी बिक रही हैं इसका सही सही आंकड़ा तो प्रकाशक देंगे लेकिन लोगों की भीड़ और उत्साह देखकर एक सुखद अनुभव जरूर होता है कि कम से कम लेखकों से मिलने, किताबें खरीदनें की आदत अभी बची हुई है। इस पुस्तक मेले में कुछ कार्यक्रम पूर्व निर्धारित हैं। नेशनल बुक टस्ट ने दो तीन माह पूर्व ही कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार कर ली थी। मसलन बहुप्रसिद्ध लेखक मंच, साहित्य मंच, आॅथर काॅर्नर आदि। लेखक मंच के प्रभारी और एनबीटी के संपादक डाॅ लालित्य ललित मानते हैं कि लेखकों से मिलने और बातचीत करने का इससे अच्छा अवसर पाठकों को कहीं और नहीं मिल सकता। इस मंच पर आने वाले लेखक संपादक, कवि, आलोचक, व्यंग्यकार अपने क्षेत्र के हस्ताक्षर हैं जिनसे मिलना वास्तव में दूर दराज के पाठकों के लिए एक सपना से कम नहीं हैं। इस मंच की परिकल्पना के पीछे हमारा मकसद किताबों का लोकार्पण और पुस्तक पर चर्चा विमर्श आदि कराना है।
विभिन्न हाॅलों मंे फैले इस मेले के चरित्र पर नजर डालें तो एक दृश्य स्पष्ट उभरता है कि मेले के तर्ज पर ही किसिम किसिम की दुकानें सजी हुई हैं। वह ज्योतिष,धर्म,खानपान,नृत्य कला आदि सभी शामिल हैं। गौरतलब हो कि इस वर्ष के अतिथि देश चीन होने के नाते चीन की कलाकृतियां, प्रकाशन, मुद्रण आदि की सामग्री हाॅल नंबर 7 में है। इस हाॅल में चीन की प्राचीन छापेखाने, मुद्रण की सामग्री, पांडुलिपियां, भोजपत्र, ताड़पत्र, एवं वस्त्र पत्रों पर संरक्षित लिपियां देखने को मिलेंगी। दिलचस्प यह भी है कि चीन की प्राचीन लिपियों के साथ ही प्रकाशन संस्थान ने बच्चों के लिए कहानियों,कविताओं की किताबों को भी उपलब्ध कराया है। सरल चीनी कैसे सीखें इस पर भी किताबें मिल जाएंगी। इस मंडपनुमा हाॅल के मध्य में नृत्य,कला आदि की प्रस्तुति होती हैं तो वहीं चारों ओर घेरे में विभिन्न भारतीय भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों की प्रतियां,भोजपत्र और मूल प्रति भी प्रदर्शित की गई है।
यह पुस्तक मेला कई बार इस एहसास से भर देता है कि यह कहीं न कहीं पुस्तकों के लोकार्पण स्थल मंे तब्दील हो चुका है। कौन लेखक नहीं चाहेगा कि उसकी किताब पर अपने समय के प्रतिष्ठित लेखक, कवि, नाटककार, व्यंग्यकार उस पर बोलें। इस लालसा में हर प्रकाशक जल्दी में है। हर लेखक में एक बेचैनी साफ देखी जा सकती है। नासीरा शर्मा, मृदुला गर्ग, महेश दर्पण को मिल जुल मन और कुईयांजान जैसी किताबों की लेखिका से संवाद करने के लिए सामयिक प्रकाशन लेखक मंच पर मुहैया कराती है तो वहीं विन्घ्य न्यूज नेटवर्क अपने कार्यक्रम काव्य पाठ मंे देश के मंजे हुए कवियों को लेकर आता है। विन्घ्य न्यूज नेटवर्क ने हाल ही में लेखकमंच पर व्यंग्यपाठ सत्र को अमली जामा पहनाया। इस कार्यक्रम में प्रेमजनमेजय, हरीश नवल, सुभाष चंदर, सुमित प्रताप सिंह आदि शामिल थे। विभिन्न बुक स्टाॅलों पर रोज दिन किताबों को लोकार्पण जारी है। वहीं साहित्य मंच पर भावना शेखर की बच्चों की मिलजुल कर रहना और जीतों सबका मन कविताओं की दो पुस्तकों का लोकार्पण संपन्न हुआ जिसमें दिविक रमेश, शेरजंग गर्ग, सुभाष नीरव, कौशलेद्र प्रपन्न, राजकमल प्रकाशन के प्रबंधक अशोक माहेश्वरी आदि ने बड़ी गंभीरता से बाल साहित्य और बच्चों की कविताओं पर चर्चा की। यह जानना भी मजेदार है कि जिन लोगों ने दो माह पूर्व इन मंचों को बुक किया था उनकी किताबों की चर्चा और लोकार्पण इन मंचों पर हो रहे हैं लेकिन जो देर से जगे उन्हें यह अवसर नहीं मिल पाया जिसका मलाल अब है। डाॅ लालित्य ललित कहते हैं कि अभी भी बहुत से लेखक प्रकाशक आ रहे हैं किन्तु अब हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। हम उन्हें लेखक मंच और साहित्य मंच उपलब्ध नहीं करा सकते। क्योंकि इसकी बुकिंग दो माह पूर्व ही की गई थी। कुछ पत्रकार लेखक तो छाप देने की धमकी भी दे कर जा रहे हैं।
मंच तो दो ही हैं लेखक मंच और साहित्य मंच इसके साथ ही अंग्रेजी के लिए आॅर्थर काॅर्नर है जहां रोज 12.45 से शुरू होकर शाम 7.30 तक विभिन्न कार्यक्रम हो रहे हैं। के के बिडला फाउंडेशन की ओर से आयोजित गीत पाठ में देश से प्रसिद्ध गीतकार बुद्धी नाथ मिश्र, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, बाल स्वरूप राही आदि ने अपने गीतों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। निश्चित ही विश्व पुस्तक मेला कई हस्तियों से मिलने का मौका प्रदान करती है। जिधर भी नजरें जाती हैं उधर कोई न कोई चेहरा टकराता है। कहीं दूधनाथ सिंह, पीयूष मिश्रा, मृदुला गर्ग, प्रेम भारद्वाज, डाॅ सुरेश ऋतुपर्ण, तजेंद्र शर्मा तो कहीं प्रेम पाल शर्मा। इस मेले में कई बार स्थिति ऐसी होती है कि बार बार एक चेहरा कई बार कई स्टाॅलों पर मिल जाते हैं।
पुस्तकों का लोकार्पण स्टाॅलों पर भी हो रही हैं। जिन स्टाॅलों के पास लेखक मंच की बुकिंग नहीं है वे अपने स्टाॅल पर ही लेखक,कवि, के बीच किताबों का लोकापर्ण कर रहे हैं। डाॅ लालित्य ललित की कविता संग्रह मुखौटों के पीछे का सच ,सब पता है, उम्मीदों भरा मौसम,आओ कुछ बेवकूफियां कर लें का लोकार्पण सुधा ओम ढिंगरा, प्रेमजनमेजय, डाॅ कमल किशोर गोयंका, पंकज सुबीर डाॅ अजय नावरिया ने किया। वहीं मेरे लिए तुम्हारा होना का लोकार्पण बुद्धी नाथ मिश्र, सुरेश ऋतुपर्ण आदि ने किया। सचपूछा जाए तो इस ही नहीं बल्कि हर पुस्तक मेले में पुस्तकों का लोकार्पणीय रिवाज से चल पड़ा है। उस पर भी जब से सोशल नेटवर्किंग बढ़ा है तब से किताबों के आने,छपने, लोकार्पण की जानकारी से लेकर पुस्तक से जुड़ी तमाम सूचनाएं तुरत फुरत में वैश्विक जामा पहन लेती हैं।
दरअसल पुस्तक लोकार्पण एक किस्म से बेटी की बिदाई की तरह होती है। जब तक लेखक लिख रहा होता है तब तक किताब उसकी होती है लेकिन जब छप कर पाठकों के हाथो में चली जाती है तब वह पाठकों की हो जाती है। एक आलोचक, समीक्षक उस किताब को कैसे किस कोण से पढ़ता और समीक्षा करता है उसपर लेखक का दबाव नहीं होता। वह सार्वजनिक हो जाती है। दूसरे शब्दों में लोकार्पण से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण किताब के कथ्य होते हैं वही पठनीयता तय किया करती है। कई किताबें, लेखक ऐसे हैं जिनकी किताबों का लोकार्पण तो नहंी होता किन्तु उसके पाठक हजारों मंे होते हैं। एक लेखक अपनी किताब का से कितना और किस हद तक न्याय कर पाया यह तय करना आलोचक एवं समीक्षक की होती है। लोकार्पणों की मेले में कितनी किताबें लोकार्पित हो रही हैं इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है किन्तु उनमें से कितनी किताबें पाठकों की अपेक्षाओं पर भी ख़रा उतरेंगी यह समय तय करेगा।


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