Monday, June 11, 2018

लिखते रहे,सुनते रहे और गुनते रहे बच्चे


कौशलेंद्र प्रपन्न
रिपोर्टों की मानें तो भारत में स्कूली स्तर पर बच्चों की लर्निंग स्थिति चिंताजनक है। लेकिन कई बार वास्तविकता इन रिपोर्ट से भिन्न मिलती है। हाल ही में पटना स्थिति बाल भवन में तकरीबन पैंतीस बच्चों की कार्यशाला में बातचीत करने का अवसर मिला। वह भी कुछ घंटे नहीं बल्कि पूरे तीन दिन। पूरे दिन सुबह दस से शाम पांच और छह बच्चे तक बच्चे कार्यशाला से जाने का नाम नहीं ले रहे थे। इस बाल भवन का किलकारी के नाम से जानते हैं। जहां विभिन्न आयु के बच्चे आते हैं। कुछ समर कैंप में तो कुछ पूरे साल। इन बच्चों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए विभिन्न गतिविधियों को अंज़ाम दिया जाता है। इनमें थिएटर, नृत्य, संगीत, नुक्कड़ नाटक, सृजनात्मक लेखन आदि। इन तमाम गतिविधियों से परिसर गुलजार रहा करता है। बच्चों से बातचीत के दौरान यह भी मालूम चला कि इन बच्चों के सुझाव, राय आदि को प्रमुखता से परिसर में स्थान दिया जाता है।
सृजनात्मक लेखन के इन तीन दिनों में विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों के जिन मुद्दों पर बातचीत और काम हुए वह वास्तव में उक्त रिपोर्ट को आईना दिखाती हैं। क्या पढ़ना और क्या लिखना इन भाषायी कौशलों में बच्चे ख़ास दक्ष थे। इनकी लिखी कहानियों, कविताओं आदि से गुज़रते हुए ज़रा भी एहसास नहीं होता कि इन्हें लिखने वाले बच्चे कक्षा दूसरी, तीसरी या पांचवीं के हैं। इन बच्चों की लेखन क्षमता और लिखने के प्रति जिज्ञासा और ललक को देखते हुए हमें यह एहसास होता है क्या ये रिपोर्ट आसमान में बनाई जाती हैं? इन रिपोर्ट लेखन में किन्हें नरअंदाज़ किया जाता है? कहां से आते हैं ऐसे डेटा जो बताते हैं कि बच्चे पढ़ नहीं सकते। बच्चे लिख नहीं सकते।
कक्षा दूसरी और तीसरे के बच्चे जब नाटक क्या है और कहानी में क्या महत्वपूर्ण घटक होते है जो कहानी को रोचक बनाते हैं आदि का समुचित और प्रसांगिक विश्लेषण के साथ बताएं तो क्या कहना चाहेंगे। इस प्रकार के जवाबों से तीन दिन रू ब रू होने का अवसर मिला। इनमें यह उत्कंठा प्रबल थी कि मैं कहानी तो लिखता हूं। कविताएं तो लिख लेता हूं लेकिन मंच पर या सब के सामने अच्छे से प्रस्तुत नहीं कर पाता। आप तो बड़े हैं आपने तो कई प्रस्तुतियां देखीं होंगी हमें भी वे कौशल बताएं ताकि हम और बच्चों से पीछे न रहें। हम भी अपनी कहानी को बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर सकें। इन बच्चों की तार्किक क्षमता और तथ्यपरक िंचंतन एक बार के लिए सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम इतने छोटे बच्चों से मिल रहे हैं या एक प्रखर और इतनी छोटी आयु में सृजनशीलता की बारीक बुनावटों को समझ और इस्तमाल कर रहे थे।

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