Wednesday, June 20, 2018

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2018 में श्री अरविंद की शारीरिक शिक्षा हुई शामिल



कौशलेंद्र प्रपन्न
शिक्षा के उद्देश्य समय और काल की मांग के अनुसार ज़माने से तय होते रहे हैं। आज़ादी पूर्व शिक्षा के मायने और मकसद अलग थे। तब हमें गुलामी की जंजीरों से छुटकारा पाना था। इसलिए तब की शिक्षा और उसके मकसद तत्कालीन ज़रूरतों के अनुसार तय हुए। आज़ादी के पश्चात् हमें देश की नवनिर्मिति के लिए दिशा और दशा तय करने थे। सो हमने कई सारे आयोग बनाए, नीतियां बनाई ताकि देश की शिक्षा राष्ट्रनिर्माण में मददगार हो सकें। ठीक इसी तर्ज़ पर समय समय पर देश के विभिन्न चेत्ताओं ने शिक्षा की दिशा और दशा निर्धारित की। इनमें महर्षि अरविंद, टैगोर, गांधी,जे कृष्णमूर्ति आदि के नाम बड़े सम्मान और एहतराम से लिए जाते हैं। इन्होंने नई शिक्षा नीति और दिशा को ही तय करने में अपनी भूमिका नहीं निभाई बल्कि शिक्षा के स्वरूप तय करने में भी अपने अविस्मरणीय योगदान के लिए जाने जाते हैं।
महर्षि अरविंद शिक्षा के जिन पांच प्रमुख घटकों पर जोर देते हैं उन्हें सरकार और शिक्षा नीति निर्माताओं ने अहमियत दी। श्री अरविंद ख़ासकर आत्मिक, शारीरिक, मानसिक आध्यात्मिक आदि शिक्षा को प्रमुखता विमर्श करते हैं। इनमें भी शारीरिक शिक्षा पर श्री अरविंद इसलिए भी वकालत करते नज़र आते हैं क्योंकि यदि शरीर ही स्वस्थ नहीं रहेंगे तो शिक्षा कैसे और किस सूरत में हासिल की जा सकती हैं। श्री अरविंद की इस वकालत को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2018 शिद्दत से स्वीकारती है। हालांकि कोठारी आयोग से लेकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968, 1986 आदि ने भी शारीरिक शिक्षा को शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल करने की सिफारिश कर चुकी है।
श्री अरविंद के शारीरिक शिक्षा की सिफारिश को इस रूप में भी समझने की आवश्यकता है कि यदि वर्तमान सरकार शारीरिक शिक्षा को शिक्षा नीति में शामिल करने का नीतिगत मन बना चुकी है तो यह कहीं न कहीं श्री अरविंद की शैक्षिक स्थापनाओं को संस्थागत पहचान और स्वीकृति मिल रही है।
गौरतलब है कि शारीरिक शिक्षा को लंबे समय से हाशिए पर रखा गया है। वह नीतिगत कमियां ही मानी जाएंगी। लेकिन देर से ही सही किन्तु श्री अरविंद की प्रमुख शैक्षिक स्थापनाओं को शिक्षा नीति में प्रमुखता से स्थान दिया जा रहा है।

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