Monday, November 6, 2017

विश्वविद्यालयः कहां गए वे दिनः शुक्रिया रवीश जी



कौशलेंद्र प्रपन्न
रवीश कुमार पिछले एक माह से विश्वविद्यालयी हक़ीक़तों से आम जन को झकझोरने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में उनका यह उन्नीसवी कड़ी थी जिसमें झारखंड़ के महाविद्यालय की जर्जर हालत से रू ब रू कराया। पूरे माह विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की पड़ताल की गई। उन स्टोरिज को देखते हुए महसूस हुआ कि हमारी उच्च शिक्षा व्यवस्था किस स्थिति से गुजर रही है।
ये कैसे विश्वगुरु बनने का सपना पूरा होगा यह पंच लाइन नहीं बल्कि नागर समाज के चेहरे पर जोरदार तमाचा से कम नहीं है। रवीश जी का मानना है कि इस एक माह में किसी भी शिक्षा मंत्री, मंत्री, समाज चेत्त्ता की ओर संज्ञान नहीं लिया गया। यही कोई और मसला होता तो बोलने वाले हजारों आ जाते। मगर क्योंकि यह मुद्दा शिक्षा का है इसलिए खामोशी सी छा गई।
इन कॉलेजों में पढ़ने वाले बच्चों के भविष्य के साथ हम किस प्रकार का मजाक कर रहे हैं इसका अंदाजा अभी शायद नहीं है। आने वाले बीस सालों में इसके परिणाम दिखेंगे।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में तकरीबन पांच साल गुजारा। वह स्मृतियां आज भी ताज़ा हैं। ताज़ा इसलिए क्यांकि वहां की शैक्षिक व्यवस्था और शिक्षकों ने शिद्दत से पढ़ाया। न केवल विषय पढ़ाए बल्कि कई बार विषयेत्तर भी जाकर जीवन के मूल्य सीखाएं। जिनमें मैं बहुत सम्मान के साथ प्रो. सेंगर जो कि प्राचीन इतिहास के विद्वान थे, प्रो. एस एस भगत इंग्लिश के विद्वान थे जिन्होंने बच्चन जी से अंग्रेजी सीखी थीं। वहीं मनोविज्ञान में प्रो. ओ पी मिश्रा, प्रख्यात मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक, हिन्दी में प्रो. विष्णुदत्त राकेश, प्रो. कमल कांत बुद्धकर आदि के साथ ही वेद के जानकार प्रो. राम प्रकाश वेदालंकार, प्रो. महावीर अग्रवाल आदि थे। इन सब ने अपने विषय को पढ़ाने में ज़रा भी कंजूसी नहीं की।

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