Friday, November 17, 2017

हवा में भेदभाव




कौशलेंद्र प्रपन्न
लगभग फ्लाइट टेक ऑफ करने वाली थी। कैबिन बंद हो चुके थे। बत्तियां बुझा दी गई थीं। घोषणा भी हो चुकी थी कि कृपया कमर बेल्ट बांध लें आदि। कि तभी आवाज़ आई ‘‘ आपको सुनाई नहीं देता कैप्टन ने अपनी सीट पर बैठने की घोषणा की है।’’
साधारण से कपड़े में खड़ा व्यक्ति सहम गया। शॉरी मैडम। और अपनी सीट पर जाकर बैठ गया।
तकरीबन चालीस हजार फीट की ऊंचाई पर लोग उड़ रहे थे। फिर आवाज़ आई ‘‘ आपको समझ नहीं आती, ऐसे खड़े होते हैं? सट के मत खड़ें हों। दूर जाइए।’’
दूसरी सवारी को बोली गई। वह भी सहम गया। ‘‘मैडम सट नहीं रहा था। आग जाने की जगह नहीं थी सो...’’
‘‘पता नहीं कहां कहां से आ जाते हैं। तमीज़ भी नहीं हैं।’’ बुदबुदाती हुई मैडम आगे बढ़ गईं। लेकिन मेरा मन थोड़ा ख़राब हो गया। इन्हीं की वजह से उनकी नौकरी है। ये हैं तो इनकी फ्लाइट उ़ड़ती है। और अपनी सवारी पर ऐसे बुदबुदाना...।
मगर उस साधारण से कपड़े में ट्रैवल करने वाला एक साधारण कामगर लगा। जो दो साल बाद अपने घर लौट रहा था। चेकिंग के दौरान उस पर नजर पड़ी थी। बड़े बड़े और भारी बैग उसके साथ खड़े थे। जब वे आपस में बात कर रहे थे तो उनकी भाषा भोजपुरी, अवधी और ब्रज मिश्रित सी महसूस हुई। एकबारगी ऐसा लगा किसी रेलवे फलेटफॉम पर हम खड़े हैं। लेकिन यहां अंतर था। लोगों के कपड़े,भाषा, हाव-भाव, बॉड़ी लैंग्पवेज एलीट किस्म के थे। उनके सब के बीच ये मजदूर किस्म की सवारी सभी को खटक रही थी। मेरे साथ बैठा सवारी सवारी ही कह रहा हूं क्योंकि अभी तक नाम नहीं जानता था। बातचीत शुरू हुई तो पता चला अफगानिस्तान में ऑर्मी विंग्स में गाड़ी चलाते हैं। छह माह के बाद आंख के ऑपरेशन के लिए भारत भेजा गया है। बातों ही बातों में कई बातें मालूम चलीं। फैलो यात्री हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला था। अपनी वहां की कई ऐसी बातें साझा की कि आंखें ख्ुली रह गईं। उसकी ख़बरें किसी भी मीडिया में दिखाई नहीं देती। सौभाग्य था मेरा कि मुझे उसके वास्तविक तजर्बे को सुनने और जानने का मौका मिला।
बहरहाल जब दिल्ली एयरपोर्ट पर बिदा हुए तो महसूस हुआ आज ग्लोबल गांव में रहने वाले सब पहले इनसान हैं। जहां भी हैं जैसे भी हैं।

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