Tuesday, December 30, 2014

अच्छा ही हुआ तुम मर गए


अच्छा हुआ
अच्छा ही हुआ तुम मर गए
समय रहते,
तुम वैसे भी जिंदा रह कर जी न पाते।
जब देखना पड़ता हजारों बच्चों की मौत,
इन्हीं आंखों से
जिन आंखों में सपने पीरोए थे,
जिन पांवों में जूते पहनाए थे
जिन पांवों से आंगन,
छत गुलजार थे
अब वे पांव,
कहीं मिट्टी में दफ़न हैं।
अच्छा ही हुआ
तुम मर गए समय रहते
वरना तुम सह नहीं पाते
और मरना पड़ता हर रोज
हर दिन देखना पड़ता महिलाओं की चीख,
आंसू के धार
तार तार
आबरू।
कितना अच्छा होता तुम आज होते
देखते अपने इन्हीं आंखों से
उन्हें जो पल पल
मर रही हैं मौत की डर से
जीने के भय से
मौन रह जाती हैं घरों की दहलीज़ पर
शहर के मुहाने पर।
तुम तो चले गए अच्छा ही हुआ
वरना तुम्हीं पर मढ़ा जाता सारा आरोप,
सारी गलतियां,
कितना अच्छा होता,
कर पाते हम विरोध,
उठा पाते आवाज,
उन के खिलाफ
जिन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता,
लाश किसकी थी,
कौन था दबा,
स्नेह के भार से
किसकी थी मंगनी,
किसके आंगन में उतरनी थी डोली।

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