Monday, December 22, 2014

शब्द अगर बोलते


अगर कभी शब्द बोल पाते तो जरूर अपने मन की बात बताते। अपने साथ होने वाले अत्याचार से भी हमें रू ब रू कराते। किस कदर हम सभ्य समाज के लोग इन शब्दों की दुनिया को ख़राब करने में जुटे हैं उसकी भी एक टीस हमारे कानों तक बजती। लकिन बेचारे बेजुबान शब्द कुछ नहीं कह पाते।
दरअसल शब्दों की दुनिया बड़ी निर्दोष और निरपेक्ष होती है। लेकिन जब वो बरतने वालों के हाथों में आती है तब उसकी प्रकृति प्रभावित होती है। शब्दों के जरिए ही हम हजारों हजार श्रोताओं और पाठकों तक पहंुच पाते हैं। पाठकों और श्रोताओं को अपने मुरीद बना पाते हैं। वहीं इन्हीं शब्दों के माध्यम से लाखों लाख श्रोताओं और पाठकों को अपने स्वार्थ के लिए भड़काते भी हैं।
शब्द अगर बोल पाते तो हमें बताते कि उनकी दुनिया कितनी नरम और नसीम की तरह फाहें वाली है।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...