Tuesday, April 1, 2014

घड़ा जो टूटा सा


अभी अभी-
जो घड़ा टूटा,
कौन सी मिट्टी थी,
पहचान सको तो पहचान लो,
किस धरती से उठाई गई थी मिट्टी,
किस खेत से लाए गए थे,
पका कर।
टूटा हुआ-
बेडौल सा घड़ा,
आपके पास ही हो,
ज़रा टटोल कर बताएं,
मेरी मदद कर सकते हैं
मैं लगा हूं,
उस मिट्टी की तलाश में।
एक बार जो फूटा-
घड़ा मेरा या कि आपका,
पहचानने में लग जाएं शताब्दियों,
टूटा हुआ घड़ा,
टूटा हुआ आईना,
घर में कहां रखते हैं,
सुना है बचपन से,
मगर जि़द है,
उन्हें ताउम्र रखूं अपने ही करीब।
सदियों से ध्यानस्त
तुम तो सदियों सदियों से यूं ही खड़े हो-
या कि ध्यानमग्न,
एक ही स्थान पर,
जटा- जूट बिखेरे,
जब भी पास आता हूं,
तुम सरसराने लगते हो,
कुछ बुदबुदाते हुए से,
ज्यो कहना चाहते हो,
कान में फूंकने को कोई रहस्य मंत्र।
जब भी टूटा है ध्यान-
त्राहि त्राहि मचा दी है तुमने,
भला ऐसा क्यों किया तुमने,
हां हम कबूलते हैं अपनी ग़लती,
हमने ही खोदी है,
तुम्हारी छाती,
गाड़ दी है फीटों गहरी पाइप।
संभव है-
तुम्हें चुभा हो हमारी घरघरती औजार,
खलबलाकर उठाया होगा तुमने अपना सिर,
मगर मगर सोचा तो होता दादू,
लाखों लाखों तेरी ही संतान,
जमीनदोस्त हो गए,
फिर भी तुम रहे मौन।
तुम्हारी संगिनी-
हां वही सागर,
बार बार पछाड़े खाता,
अपनी ही उत्ताल तरंगों से टकराता,
याद दिलाता,
कितना ग़मज़दा है सागर,
सदियों सदियों से।
तुमने देखा-
पीढि़यां आती रहीं,
और चली भी गईं,
बस बचे रहे तो तुम,
क्या कोई अता पता दोगे,
क्या केाई तस्वीर,
जिससे मिलान कर सकूं।

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