Tuesday, April 1, 2014

एक आवाज़


एक आवाज़-
देहारी पर,
हर वक्त देता रहता है।
जब भी-
दरवाजे़ पर आता हूं,
आवाज़ गुम हो जाती है,
न आवाज़ और न ही चेहरा।
चेहरे की पहचान में-
आवाज़ भूल जाता हूं,
बार-बार,
दहलीज़ तक जाता,
बैरन लौट आता हूं।
चैखट पर-
न आवाज़ होती और न चेहरा ही मुकम्मल,
थक कर,
वपस लौटता हूं,
तभी फिर आवाज़ आती है,
उठता हूं,
शिद्दत से बुलाती उस आवाज़ को पहचाने को बेताब,
चल पड़ता हूं,
आवाज़ को मनाने,
प्यार से दुलराने को।

 

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