Friday, November 22, 2013

भविष्य का द्वंद्व यूं ही खड़ा था


अभी तलक बच्चों का भविष्य और करिअर की दिशा अनिश्चिय का शिकार था। सवाल जवाब में बच्चों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। लेकिन सार्वजनिकतौर पर अपने मन की उलझन को साझा करने में हिचकिचाते बच्चों ने अपनी मन की गांठ बाहर घेर कर साझा किया। 
सवाल था शिक्षा हमें क्या देती है? नौकरी, घर, पैसे, आत्महत्या या बेहतर जीवन और क्या हमें बेहतर मनुष्य बनने में मदद करती है?
हलांकि बच्चों ने स्वीकारा कि शिक्षा हमें अच्छा मनुष्य बनाती है। लेकिन उनका अच्छा मनुष्य के पीछे का तर्क ज़रा चैकाने वाला था। उनका मानना था जो पैसे, नौकरी और एमएनसी की जाॅब दिलाती है। एकबारगी यह ताज्जुब की बात भी नहीं है क्योंकि जिस तरह का सामाजिकरण उनका हो रहा है ऐसे में इससे अधिक सार्थक जवाब की उम्मींद भी क्या की जा सकती है। 
अमुमन बच्चों के लिए जाॅब और अच्छी लाइफ से आशय खूब पैसा था। लेकिन वहीं दो-चार बच्चे ने कहा नहीं सर, हम एक अच्छा इंसान बनना चाहते हैं। हम दंगा-फसद नहीं करना चाहते। हमारे मां-बाप गरीब हैं उन्हें सुविधा और आराम देना चाहता हूं। इसके लिए नौकरी और पैसे दोनों ही जरूरी हैं।
इस संवाद से जो चिंताजनक बात निकल कर खड़ी है वह यह कि अभी भी बच्चों के दिमाग में यह साफ नहीं है कि वो क्या करना चाहते हैं? कैसे अपने लक्ष्य को हासिल करेंगे? और उनकी मदद कौन कर सकता है।
यदि बच्चे द्वंद्व से गुजर रहे हैं तो इसमंे अभिभावकों के साथ ही अध्यापक वर्ग भी शामिल है। क्योंकि जितनी जिम्मेदारी अभिभावकों की है उससे ज़रा भाी कम अध्यापकों की नहीं मानी जा सकती। आखिर उम्मींद की एक रोशनी अध्यापक की ओर से भी तो आती है। दिगभ्रमित बच्चों को देख और बात करके लगा कि उन्हें एक दो सत्र और काॅसिलिंग की आवश्यकता है ताकि वो स्पष्ट हो सकें कि वो क्या बनना चाहते हैं और उस योजना निर्माण में कौन उनकी मदद कर सकता है।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...