Tuesday, November 19, 2013

पेड़ होते थे ऊँचे -
घर से बोहोत ऊँचे,
झांको तो पेड़ लगते थे आशीष देते,
देखते ही देखते पेड़ होगे ठिगने,
पेड़ को ठेंगा दीखते खड़े हो गए मकान।।।
पेड़ से ऊँचे होने लगे बिल्डर फ्लोर-
२० या २५ माले से देखो तो कैसे लगते हैं पेड़ ,
बौने ठिगने,
पेड़ दादू हो गए बूढ़े ,
उनकी नीम शीतलता हो गई खत्म,
पीपल भी सूख गए.
कंक्रीटों के शहर में पेड़ कहाँ हों खड़े।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...